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Showing posts from 2015

परमवीर अब्दुल हमीद ने तोड़े थे 7 पाकिस्तानी टैंक

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पाकिस्तान की ओर से आ रही परमाणु युद्ध की ताजा धमकियों के बीच 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के महानयक, परमवीर चक्र से सम्मानित हवलदार अब्दुल हमीद के असाधारण वीरतापूर्ण कारनामें को हमें याद करना चाहिए और पाकिस्तान को भी याद दिलाना चाहिए। अमेरिका से प्राप्त पैटन टैंक पर इतराते पाकिस्तान के हमले का मुंहतोड़ जवाब देते हुए हवलदार अब्दुल हमीद ने अपनी गन माउंटेड जीप से अकेले ही दुश्मन के सात टैंक तबाह कर दिए थे। उस समय दुनिया में अजेय कहलाने वाले पैटन टैंक के सामने गन माउंटेड साधारण सी जीप की हैसियत, एक खिलौने से अधिक नहीं थी। लेकन हवलदार हमीद ने अपने अद्भुत साहस और रणनीतिक सूजबूज के बल पर वह ऐतिहासिक कारनामा कर दिखाया जिसने उन्हें अमर कर दिया। इस घटना के बाद अमेरिका को भी अपने इन टैंकों के डिजाइन में बड़े परिवर्तन करने पडे़ क्योंकि हवलदार हमीद ने उन टैंकों के कमजोर स्थानों को निशाना बनाकर उन्हें तबाह कर दिया था। युद्ध में तकनीकि के महत्व से कभी इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन आमने सामने की लड़ाई में साहस और धैर्य सदैव ही महत्वपूर्ण होता है, जिसके अभाव में उन सात में से चार टैंकों को तो पाकिस्त...

भारत की सामूहिक चेतना की सूत्रधार है हिन्दी

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पिछले दिनों 10वां विश्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल में संपन्न हुआ। तीन दिन में कुल बारह विभिन्न विषयों पर देश के वरिष्ठ हिंदी सेवियों ने हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए चिंतन किया। इस चिंतन-मंथन से जो मक्खन निकला वह निश्चित ही देश-विदेश में हिन्दी के व्यावहारिक विस्तार में सहायक तो होगा ही साथ ही हिन्दी का मान-सम्मान बढ़ाने में उपयोगी सिद्ध होगा। हिन्दी जगत इस बात से किसी हद तक संतुष्ट हो सकता है कि कुछ वर्ष पहले तक हिन्दी के प्रति देखा जाने वाला उपेक्षाभाव अब कहीं तिरोहित हो चला है। पिछले कुछ समय से हिन्दी के प्रति जो स्वीकार्यता देखी जा रही है वह निष्चित ही संतोष देने वाली है लेकिन अभी हिन्दी को बड़ा रास्ता तय करना है। दरअसल हिन्दी जगत को हिन्दी की प्रतिष्ठा के लिए बड़े और वास्तविक जोखिम उठाने होंगे। जिस प्रकार हिन्दी प्रेमी युवा अब अपने काम-काज की राहें अंग्रेजी भाषा के स्थान पर हिन्दी भाषा में तलाशनें का जोखिम उठाने लगे हैं और सफलता भी प्राप्त करने लगे हैं, इस बदलती मानसिकता ने हिन्दी को काफी आगे बढ़ाया है। अंग्रेजी भाषियों के सामने ही उन्हीं के स्तर पर खड़े होकर बिना किसी हिचक या मानस...

बहादुर लैब्राडोर 'मानसी' ने लिया आतंकियों से लोहा, हुई शहीद

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देश की सीमाओं की रक्षा के लिए लड़ते हुए सेना, अर्ध सेनिक बल और पुलिस के जवानों द्वारा देश के दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए दी जोने वही शहादत पर तो अक्सर देशवासियों को गर्व होता ही है। लेकिन पिछले दिनों नार्थ जम्मू-कश्मीर के तंगधर सैक्टर में लैब्राडोर नस्ल की एक देशभक्त श्वान मानसी ने आतंकी घुसपैठियों को उनके इरादों में कामयाब नहीं होने दिया। हुआ यूं कि सेना की खोजी श्वान दस्ते की प्रशिक्षित मानसी अपने हैंडलर बशीर अहमद वार के साथ थी। तभी कुपवाड़ा के घने जंगलों में उसे कुछ हलचल का एहसास हुआ। उसने तुरंत उस ओर भौंकना शुरू किया तो तत्काल दूसरी ओर से दुश्मन की गोली उसे आकर लगी। परिस्थितियों को भांप कर और अपनी प्रिय मासनी का बदला लेने के लिए बशीर ने इस ओर से गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। बहादुर मानसी और जांबाज बशीर का साथ दुश्मन की गोली भी नहीं तोड़ पाई और जब तक सेना ने पहुंचकर घुसपैठियों को मारा तब तक दोनों एक साथ इस लोक से विदा हो चुके थे। सेना ने पूरे सम्मान के साथ मानसी का अंतिम संस्कार किया। अपने जांबाज सैनिकों को तो हम अक्सर सैल्यूट करते ही रहे हैं, एक बार मानसी के लिए भी सैल्यूट होना च...

क्या केंद्र सरकार वाकई एरोगेंट है?

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पिछले दिनों नगा विद्रोही नेताओं के साथ केंद्र सरकार के शांति समझौते पर आक्रामक रुख अपनाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार को एरोगेंट कहा। हिन्दी में एरोगेंट के अर्थ होते हैं- अक्खड, हठी, अभिमानी, हेकड़। जाहिर है लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में ऐेसे शब्दों के लिए कोई जगह हो ही नहीं सकती। यदि ऐसा होने का आरोप किसी सरकार पर लगता है तो उस सरकार को अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति समर्पण के स्तर पर विचार करना चाहिए। यह निश्चित ही गंभीर मामला है। यह बात तब और भी गंभीर हो जाती है जब हाल ही में लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता देश में आपातकाल की संभावनाओं पर टिप्पणी कर चुके हों। सोनिया गांधी की आपत्ति शांति समझौते को लेकर कदापि नहीं है बल्कि इस समझौते के बारे में असम, मणिपुर और अरुणांचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को अंधेरे में रखने से है। समस्या से प्रभावित इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को निश्चित ही विश्वास में लिया जाना चाहिए था। नरेंद्र मोदी सरकार कहती भी रही है कि वह लोकतंत्र के स्वस्थ मूल्यों को लेकर चलेगी और किसी राज्य में यदि दूसरे दल की भी सरकार है तो वहां के मुख्यमंत्रियों क...

कक्षा 3 की किताबों में आरोपी आसाराम बापू महान संत

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राजस्थान के जोधपुर जिले के कई विद्यालयों में पढ़ाई जा रही कक्षा 3 की पाठ्य पुस्तक नया उजाला में आसाराम बापू को विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, गुरु नानक देव और मदर टेरेसा की श्रेणी का महान संत बताया गया है। उल्लेखनीय है कि आसाराम बापू अगस्त 2013 से बलात्कार के आरोप में जेल में बंद हैं। यह मामला सामने आने के बाद जब मीडिया ने इस पुस्तक के प्रकाशक से संपर्क किया, तो वहां से बताया गया कि पुस्तक में यह पाठ तब से शामिल है जब आसाराम बापू पर ऐसे आरोप नहीं लगे थे। यहां सवाल यह नहीं है कि आसाराम बापू वास्तव में दोषी हैं या नहीं। उनके दोषी होने या न होने का फैसला तो न्यायालय करेगा। सवाल यह है कि आसाराम बापू को जेल में बंद हुए लगभग दो वर्ष होने जा रहे हैं, उन पर बलात्कार जैसा अत्यधिक घिनौना और गंभीर आरोप लगा है। ऐसे में, क्या वे विद्यालय जिनमें यह किताब पढ़ाई जा रही है उनका प्रबंधतंत्र, वे अध्यापक जो बच्चों को यह किताब पढ़ा रहे हैं, वे अभिभावक जिनके बच्चे ये किताब पढ़ रहे हैं, इन सबके साथ ही जोघपुर के शिक्षा विभाग के अधिकारी और स्वयं इस पुस्तक के प्रकाशक, किसी के संज्ञान में ये बात क्यों नहीं आई? जबकि...

करनी का महत्व बता गए कलाम

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भारतीय दर्शन ने इस संसार को नश्वर मानने के बावजूद कर्म की प्रधानता को सर्वोच्च स्थान दिया है। अतः संसार में मनुष्य के कर्म और विचार कितना महत्व रखते हैं इसके लिए 30 जुलाई 2015 को सदैव याद रहेगी। इस तारीख को दो विपरीत स्वभाव के लोगों ने दूसरी दुनिया का सफर जिस अंदाज में शुरू किया वह सदियों तक एक मिसाल की तरह पेश किया जाएगा। एक देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, जिन्होंने इस दुनिया से विदा ली तो पूरा देश रोया और दुनिया गमगीन हुई। सभी को लगा कि कोई अपना चला गया। कोई ऐसा जो उनका संरक्षक था। कोई ऐसा जो उन्हें सही और गलत का एहसास कराता था। कोई ऐसा जो भ्रम के बादलों को हटाकर सत्य और सफलता का मार्ग दिखाता था। उनके शब्द लोग रट रहे हैं, उनकी बातों को याद कर रहे हैं, उनके कहे का अनुसरण कर रहे है, उनके लिखे को पढ़ रहे हैं। जो उनसे प्रत्यक्ष मिले थे, वे अपने को सौभाग्यशाली बताते हुए आंसू बहा रहे हैं और जिन्होंने उन्हें केवल तस्वीरों और टीवी पर देखा था वे भी गमजदा हैं। उनकी सौम्यता, उनकी सज्जनता, उनका स्नेहपूर्ण व्यक्तित्व, मानवता के प्रति उनका वास्तविक प्रेम, संसार को सुंदर बनाने की उनकी ...

सार्वजनिक जीवन में साख और नाक

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सब चलता है..., कौन पूछता है..., जैसे अनेक ऐसे जुमले हैं जो हम भारतीयों को अनेक आवश्यक नियमों, कानूनों और मर्यादाओं की उपेक्षा करके, अपने तात्कालिक स्वार्थ को साधने और मतलब निकालने में माहिर बनाते हैं, साथ ही जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह भी। यह लापरवाही तब भारी पड़ जाती है जब व्यक्ति किसी संवैधानिक दायित्व पर पहुंच जाता है। ऐसे ही जुमलों से प्रेरित लापरवाहियों से रचे चक्रव्यूह में भाजपा की तीन प्रमुख नेत्रियां फिलहाल फंसी हुई नजर आ रही हैं। संसद का वर्तमान सत्र इन्हीं की नादानियों पर आधारित कांग्रेस द्वारा की जा रही महानादानी के कारण बाधित है। ऐसे ही चला तो इस सत्र में देश की जनता का लगभग 200 करोड़ रुपया यूंही बर्बाद हो जाएगा। केंद्रिय मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कभी नहीं सोचा होगा कि उन्हें ललित मोदी से दोस्ती निभाना इस कदर फजीहत में डाल देगा। उसी प्रकार केंद्रिय मंत्री स्मृति ईरानी की शिक्षा का सवाल भी ऐसी ही लापरवाही का नतीजा है। ऐसा नहीं है कि ऐसे विवाद पहले नहीं उठे हैं। राहुल गांधी की शिक्षा को लेकर अनेक भ्रम आज भी प्रचलित हैं। लेकिन इस विवाद...

भाजपा और कांग्रेस में बढ़ती दूरियां

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भारत के वर्तमान राजनीतिक हालातों में फिलहाल यही समझ आ रहा है कि केंद्र में या तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनेगी या भाजपा के। लेकिन ये दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां देश में जिस राजनीतिक विघटन की नींव रखती नजर आ रही हैं वह किसी के हित में नहीं है। दोनों ही पार्टियां एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में लगी हैं वह राजनीतिक विश्लेषकों को भी चिंता में डालने वाला है। ऐसा नहीं है कि यह देश स्वस्थ राजनीतिक संस्कृति और परंपराओं का साक्षी नहीं रहा है। लेकिन यूपीए सरकार के कार्यकाल और अब एनडीए सरकार के समय जिस प्रकार देश की सर्वोच्च पंचायत, राजनीतिक पार्टियों की मनमानी का शिकार हो रही है वह चिंता में डालने वाला घटनाक्रम है। यूपीए सरकार के समय संसदीय सत्रों को जिस प्रकार भाजपा बाधित करती थी लगभग उसी रास्ते पर अब कांग्रेस भी चल रही है। उलटबांसियों के इस खेल को देश का नागरिक बड़ी लाचारी और हताशा के साथ देख रहा है और राजनीति में पक्ष और विपक्ष के बीच बढ़ती दूरियां और पनपती अस्वीकार्यता के कारणों को जानने का प्रयास कर रहा है। इन दूरियों के अपने खतरे हैं। इन खतरों के परिणाम बहुत गहरे हैं। लोकतांत...

आईटीआई का महत्व

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान की देश को आईआईटी नहीं बल्कि आईटीआई की जरूरत है, धरातलीय परिस्थितियों के मद्देनजर काफी महत्वपूर्ण है। उपेक्षा और भ्रष्टाचार का शिकार हो रहे आईटीआई के तंत्र को विशेष महत्व का क्षेत्र बनाने में प्रधानमंत्री का यह बयान मील का पत्थर साबित होगा ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। आर्थिक विशेषज्ञों का भी मानना है कि देश के आर्थिक विकास के लक्ष्यों को तेजी से हांसिल करने के लिए नए रोजगार पैदा करना एक बड़ी चुनौती है। देश में युवाओं की संख्या को देखते हुए सभी को बड़े पदों पर समायोजित करना असंभव ही है। अतः इंजीनियरों की अपेक्षा कुशल और दक्ष श्रम शक्ति तो आईटीआई से ही मिल सकती है। वैसे भी एक इंजीनियर के साथ दस-बीस आईटीआई प्रशिक्षितों की आवश्यकता रहती है। लेकिन पिछले दो दशकों से निजि क्षेत्र के इंजीनियरिंग काॅलेजों से जिस प्रकार से इंजीनियरों की बड़ी संख्या निकली है, लेकिन गुणवत्ता के लिहाज से बाजार में उन्हें नौकरी के लायक ही नहीं समझा जा रहा। अतः आईटीआई के मामले में यह सतर्कता बड़ी कड़ाई के साथ बरतनी होगी कि वहां गुणवत्ता के मामले में समझौता न हो, तभी बात बन सकेगी। दूसरी...

बेखौफ मिलावटखोर

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मिलावट का गोरखधंधा जिस प्रकार भारत में जितना कुख्याती के साथ फला-फूला है वैसा शायद ही किसी अन्य देश में देखने को मिले। दुनिया को नैतिकता, आदर्श और मानव कल्याण का पाठ पढ़ाने की समृद्ध सांस्कृतिक थाती पर इतराने वाले हम भारतवासी किस ऐसे तत्व को भूल गए हैं कि हमारा पूरा जीवन ही मिलावट का शिकार हो गया है। फिलहाल मिलावटी शराब से मरने वालों की गिनती हो रही है। इससे पूर्व बच्चों की पहली पसंद बन चुके मैगी नूडल्स मैं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्व पाए गए थे। दूध में हानिकारक रसायनों के बाने में देश के सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी कि क्या दूध में सायनाइड मिलाया जाए, जिसे पीकर लोग तुरंत मरने लगें, तब सरकार कोई कानून बनाएगी, परिस्थितियों की गंभीरता को दर्शाती है। हमारे भोजन की थाली कैसे जहरीली हो गई है इस बारे में मीडिया में अक्सर खबरें आती रहती हैं। इसका अर्थ है कि रोटी, सब्जी, दाल, चावल, मसाले तक जानलेवा मिलावट के शिकार हैं। जीवन रक्षक दवाएं तक मिलावट से बच नहीं पा रही हैं। आज मरीज को पता नहीं है कि जिस दवा को वह अपनी जीवन रक्षा या स्वास्थ्य लाभ के लिए खा रहा है वह उसे बचाएगी या मौत के रास्त...

बुजुर्ग और उनकी तनहाई

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              old age & loneliness स्वास्थ्य सेवाओं में हुए क्रांतिकारी विकास ने मनुष्य की औसत आयु में जबरदस्त इजाफा किया है। इसके कारण इस खूबसूरत लेकिन नश्वर संसार में इंसान का जीवन लगातार लंबा हो रहा है। निश्चित ही यह सभी को अच्छी लगने वाली महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस उपलब्धि ने संसार में बुजुर्गों की संख्या में भी जबरदस्त इजाफा किया है। एक अनुमान के अनुसार आगामी पैंतीस वर्षें में इस धरती पर बुजुर्गों की संख्या बीस अरब का आंकड़ा पार कर जाएगी। जाहिर है उनके ऊपर होने वाले खर्च में भी इजाफा होगा। हो सकता है आर्थिक दबाव के उस इजाफे को दुनिया वहन कर ले, लेकिन उनके भावनात्मक पहलू की समस्याएं निश्चित ही गंभीर होती जाएंगी। हाल ही में खबर आई है कि जापान में एक अस्सी वर्षीय बुजुर्ग की मृत्यु का पता एक माह बाद लग सका, जबकि उसके बच्चे उसके अपार्टमेंट के किराए और अन्य खर्चों को लगातार उठाते रहे। तनहाई में ऐसी मौतों की संख्या दुनिया भर में लगातार बढ़ रही है, भारत भी इससे अछूता नहीं है। यह अपने तरह की समस्या है। जिस रास्ते पर यह दुनिया जाती दिख ...

मौलाना को सजा का संदेश

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पाकिस्तान में आतंकवाद निरोधी एक अदालत ने एक मस्जिद के धर्मगुरू अब्दुल गनी को दस वर्ष कारावास और साढ़े सात लाख रुपयों की सजा सुनाई है। इस धर्मगुरू पर अवाम के बीच दूसरे धर्म के अनुनाइयों के प्रति नफरत फेलाने का गंभीर आराप था। खबर यह भी आई है कि ऐसे ही कुछ अन्य मामलों में कुछ और लोगों के विरुद्ध भी दंडात्मक कार्यवाही की गई है। जाहिर है पाकिस्तान में यह नई शुरूआत है जिसकी हर स्तर पर प्रशंसा करनी चाहिए। अभी तक पाकिस्तान पर इस बात के आरोप लगते रहे हैं कि वहां इस्लाम के अलावा दूसरे धर्म के अनुनाइयों के विरुद्ध माहौल रहता है, जिसके कारण उनके मानवाधिकारों का हनन हर कदम पर देखने को मिलता है। इस माहौल को बनाने में वहां के मुस्लिम धर्मगुरुओं को विशेष रूप से जिम्मेदार माना जाता है। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब आम जनता पर इन धर्मगुरुओं के गहरे प्रभाव के चलते वहां की सरकार उन पर लगाम लगाने में अपने को लाचार पाती है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार होने वा आलोचनाओं के बावजूद पाकिस्तान सरकार ऐसे मामलों में कोई ठोस कदम नहीं उठा पाती। इस लिहाज से वहां की अदालत द्वारा मौलाना को दी गई य...

डिजिटल इंडिया की चुनौतियां

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा डिजिटल इिंडिया का आगाज मुख्य रूप से भारत के गांवों और दूरदराज के इलाकों तक सूचना क्रांति की चमक को ले जाने का प्रयास ही नजर आ रहा है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। कई बड़े उद्योगपतियों का भी उन्हें पूरा साथ मिल रहा है। यदि यह अभियान सफलता की ओर बड़ता है तो देश की बड़ी आबादी को शिक्षा, रोजगार, खेती-किसानी, सिंचाई सुविधाएं, स्वास्थ्य और व्यापार के नए रास्ते खुलेंगे और उम्मीदें जगेंगीं। लेकिन इस रास्ते की चुनौतियां भी कम नहीं हैं। बड़ी चुनौती है इस क्रांति को केवल अंग्रेजी या हिंदी भाषा तक सीमित रह जाने से रोकना। देश में बोली जाने वाली प्रत्येक भाषा को इस क्रांति का लाभ मिलना चाहिए, यह प्रारंभ से ही देखना होगा। यदि किसी कारण इस मामले में चूक हो गई तो अनेक प्रकार की समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। दूसरी चुनौती है देश की बड़ी निरक्षर आबादी को इस लाइक बनाना कि वह डिजिटिलाइजेशन के महत्व को समझ सके और उसे अपना सके। भारत के ग्रामीण भारत में नई तकनीकि को अपनाने के प्रति जो उपेक्षाभाव है उसके कारण काफी कठिनाइयां आने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। सरकार को अपने स...

हाईकोर्ट बेंच की मांग

किसी भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में न्यायालय का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसीलिए उसे लोकतंत्र के चार स्तंभों में से एक माना गया है। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बैंच की स्थापना के लिए लंबे समय से आगरा और मेरठ में जो आंदोलन चल रहा है, उसके कारण न्यायलय परिसर लंबी हड़तालों और आंदोलनों के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में वादकारियों का समय से न्याय पाने के अधिकारों पर भी जबरदस्त कुठाराघात हो रहा है। फिलहाल इस समस्या को कोई समाधान दिखाई नहीं दे रहा क्योंकि इसके लिए जैसी राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए उसका सर्वथा अभाव दिखाई देता है। ऐसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा के मुकदमों की सुनवाई इटावा में करने की व्यवस्था करके निश्चित ही बहुत कड़ा और एतिहासिक कदम उठाया है। न्यायहित में उठाए गए इस कदम की सराहना होनी चाहिए। आखिर न्याय हमारे सामाजिक जीवन का अति आवश्यक अंग है। न्यायालयों में हड़ताल से न्याय की मूल भावना आहत होती है। समस्या यह भी है कि जब राजनीतिक इच्छाशक्तियों पर स्वार्थ का परदा पड़ा हो तो आखिर लोकतांत्रिक व्यवस्था में हड़ताल करके व्यवस्था का विरोध करने के अलावा और क्या किया जा स...

दिल्ली के दंगल का संदेश

चुनावी राजनीति यूं तो सदैव ही आम और खास की जिज्ञासा जागरण का कारण रही है लेकिन दिल्ली के वर्तमान विधानसभा चुनाव जिस स्तर पर पहुंच गए हैं,   वह स्तर कम ही देखने को मिलता है। इस चुनाव में पार्टियां महत्वपूर्ण नहीं हैं,   नेता महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू जिसने देश-दुनिया को लगातार अपने प्रभाव में ले रखा है उसे,   राजनीति में नौसीखिये अरविंद केजरीवाल ने चुनौती दी है। मतदाता किसे समर्थन देंगें या एक बार फिर दोनों को बगलें झांकने पर मजबूर करेंगे,   ऐसे प्रश्नों के करण कौतुहल का स्तर लगातार बड़ रहा है। मीडिया में चल रही बहसें और चुनावी सर्वेक्षणों के महत्व अपनी जगह हैं लेकिन जिस गति से नई और पुरानी राजनीतिक पार्टियां और नेता लगातार राजनीतिक वर्चस्व बनाने के लिए तिकड़म भिड़ाने लगे हैं और आम मतदाता के सामने भ्रामक स्थितियां पैदा करने में माहिर हो गए हैं,   तो मानना चाहिए कि अब समय आ गया है जब देश के मतदाताओं को भी राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रशिक्षित किया जाए। भारत की जनता की बड़ी समस्या है राजनीतिक जागरूकता का अभाव। यदि आम नागरिक राजनीतिक रूप से जागरूक ह...

पाइथागोरस बनाम बोधायन

पाइथागोरस बनाम बोधायन क्या दुनिया का पहला हवाई जहाज भारत में बना था?  क्या दुनिया को पाइथागोरस थ्योरम भी भारत ने दी थी? ये प्रश्न महत्वपूर्ण इसलिए हैं क्योंकि फिल्म ’हवाईजादा’ में दी गई जानकारी से भारतीय युवा रोमांचित महसूस कर रहा है। दूसरी ओर विज्ञान और प्राधोगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने पाइथागोरस थ्योरम को भारतीय बोधायन प्रमेय बताकर भारत सहित दुनिया के गणितज्ञों में नई बहस छेड़ दी है। हालांकि एनसीईआरटी की गणित की पुस्तकों में पाइथागोरस के साथ ही बोधायन का जिक्र बहुत पहले से शुरू हो चुका है। एक वर्ग है जो ऐसी बहसों को निरर्थक मानता है वहीं दूसरे वर्ग का मानना है कि इतिहास केवल तथ्यों का ज्ञान नहीं होता बल्कि वह वर्तमान के गौरव का कारण भी होता है। आज की पीढ़ी जब अपने गौरवशाली अतीत को जानेगी तभी उसे भविष्य के लिए संघर्ष की प्रेरणा प्राप्त होगी। ऐसे अनेक विषय हैं जैसे, यह माना जाता है कि दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी भारत में हुई। चिकित्सा विज्ञान में भारत की श्रेष्ठता के दावे भी कम नहीं हैं, कहा जाता है कि शल्य क्रिया के श्रेष्ठतम उपकरण भारत में उपलब्ध थे। दुनिया का सर्वश्रेष्ठ...

'गंदी बात' के विरोध में जावेद

"गंदी बात" के विरोध में जावेद वर्तमान दौर के फिल्मी गीतों में लगातार बढ़ रहे भद्देपन से देश के साहित्य जगत की चिंतायें अब गीतकार जावेद अख्तर के माध्यम से मुखर हुई हैं। उन्होंने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि समाज को भद्दे फिल्मी गीतों के विरुद्ध अपनी आवाज उठानी चाहिए। जावेद की इस पहल का स्वागत हर स्तर पर होना चाहिए। किसी भी गीत और साहित्य की रचना केवल मनोरंजन हेतु नहीं अपितु समाज को अनुशासित करने, उसे सभ्य और सुसंस्कारित बनाने के लिए होती है। इसीलिए साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है जो किसी भी इंसान को गहरे तक प्रभावित करने की अनूठी ताकत रखता है। सामान्य मनोरंजन के लिए लिखे गए गीत भी अपना गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। ’चोली के पीछे...’ से लेकर ’गंदी बात...’ और उसके आगे तक के फिल्मी गीतों ने समाज का मनोरंजन कम किया, अराजकता अधिक फैलाई। ऐसे गीतों के सामाजिक प्रभाव को देखें तो पाते हैं कि इसने ’गंदी बात’ की गंभीरता को समाप्त किया, जिसके परिणाम स्वरूप अनेक असामाजिक घटनाएं तब तक गंदी बात नहीं रह गईं जब तक उनको अंजाम देने वाले कानूनी शिकंजे में नहीं फंसे। युव...
महामारी बनता कैंसर सरकार और सामाजिक संगठनों का ध्यान आमतौर पर उन्हीं बीमारियों पर जाता है जो महामारी का रूप ले लेती हैं। लंबे संघर्ष के बाद देश ने पोलियो जैसी बीमारी पर अब काबू पा लिया है। टीबी पर काबू पाने के लिए लगातार कोशिशें जारी हैं। एड्स को लकर भी जैसा शोर कुछ वर्ष पहले तक था अब नहीं है। ब्लड प्रेशर और डायबिटीज को लेकर भी अब पहले से अधिक सतर्कता है। लेकिन कैंसर को जानलेवा तो मान लिया गया है पर अभी महामारी के नजरिये से नहीं देखा जा रहा है। जबकि यह जिस तेजी से अपने पांव पसार रहा है, वह निकट भविष्य के लिए गंभीर खतरों की ओर इशारा है। हालांकि अभी इसकी तेजी के कोई प्रमाणिक आंकडे़ मौजूद नहीं हैं। फिर भी अस्पतालों और आम समाज के बीच से जो खबरें लगातार आ रही हैं वे परेशान करने वाली हैं। हाल ही में ग्रेटर नोएडा के सादोपुर गांव से खबर आई है कि वहां का हर तीसरा घर कैंसर की चपेट में हैं और इस रोग की गिरफ्त में आकर गत पांच वर्षों में पचास लोग मौत के मुंह में समा चुके हैं। उसी प्रकार पंजाब से भी खबर आई थी कि वहां के कई गांवों के अधिकांश वाशिंदे केंसर की चपेट में हैं। ऐसी खबरें भी हालांकि यदा ...
गंगा पर चिंतित न्यायालय हम भारतवासियों के लिए ’गंगा’ शब्द का श्रवण या उच्चारण ऐसा भावनात्मक वायुमंडल पैदा करता है जैसे हम अपने मूलाधार से मिल रहे हों। गंगा को हमने नदी नहीं, मां माना है और गंगा जल को अमृत तुल्य। लेकिन काल के प्रवाह ने ऐसा उपभोक्तावाद हमारे मन-मस्तिष्क में स्थापित किया कि मां गंगा भयानक प्रदूषण से कराह उठी। तीस वर्ष पूर्व हमारा ध्यान गंगा को साफ करने की ओर गया तो हमने कुछ प्रयास प्रारंभ किये। लेकिन इन तीस वर्षों में जनता द्वारा मेहनत से कमाए गए लगभग दो हजार करोड़ रुपये तो सरकारी खाते से निकल गए लेकिन गंगा पहले से और अधिक गंदी ही नहीं हुई बल्कि कहीं-कहीं तो अपनी प्रासंगिकता भी खो बैठी। अब जब इस गंभीर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की खिंचाई की और पूछा कि क्या इसी सरकार के कार्यकाल में गंगा की सफाई हो पाएगी? इस प्रश्न के पीछे कोर्ट की भावना सरकार को समय सीमा में बांधना तो है ही साथ ही इसे चुनावी भावनात्मक मुद्दा बनने से रोकना भी है। सरकार ने संभावना व्यक्त की है कि 2018 तक वह गंगा की सफाई का कार्य पूरा कर लेगी। ऐसे मामलों में सरकारों के आश्वासन कोई ...
विवेकानंद का हिन्दुत्व और धर्मांतरण आगरा में चंद तथाकथित बंग्लादेशी मुस्लिमों ने काली माता की पूजा करके हवन किया तो उसकी लपटें देश विदेश की मीडिया में सुर्खियां बन गईं। बहस का जो दौर शुरू हुआ , उसमें हर नेता-अभिनेता हिन्दुत्व का विशेषज्ञ बन गया। ऐसे में याद आते हैं स्वामी विवेकानंद जिन्होंने हिन्दुत्व का केवल गहराई से अध्ययन ही नहीं किया बल्कि उसे अपने जीवन में भी उतारा। अतः हिन्दुत्व और धर्मांतरण पर स्वामी विवेकानंद के बिना कोई निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं है। शिकागो की धर्म सभा में स्वामी विवेकानंद ने विश्व को हिन्दुत्व की आधुनिक व्याख्या से परिचित कराते हुए कहा , ’’ संसार में सन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद करता हूं , धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूं और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की ओर से धन्यवाद देता हूं... मुझे एक ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है , जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीडित और शरणार्थियों को आश्रय दिया। हम लोग सब धर्मों के प्रति सहिष्णुता में केवल विश्वास ही नहीं रखते , वरन् सब धर्मों को...
बर्बर और निंदनीय इस्लाम का शाब्दिक अर्थ है ’शांति’। लेकिन इस धरती पर सर्वाधिक रक्तपात #ISLAM के नाम पर ही हुआ है। इस्लाम के स्वयंभू जिहादियों ने एक बाद फिर पैगंबर के अपमान का बदला लेने के लिए पेरिस में दस निहत्थे पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया। अभी पाकिस्तान में स्कूल के बच्चों का कत्लेआम धुधलाया भी न था कि पेरिस में घटना घट गई। इस बर्बर कृत्य की जितनी निंदा की जाए कम है। यह तथ्य भी अपनी जगह है कि लगातार मिल रही चेतावनियों के बावजूद अखबार ऐसे कार्टून छाप रहा था जिससे अल्लाह के बंदों की भावनाएं आहत हो रही थीं। निसंदेह अखबार की गलती थी और उसके किए को उचित नहीं ठहराया जा सकता लेकिन आज के इस दौर में बौद्धिक आक्रमण का जवाब गोलीबारी से देना भी कहीं से जायज नहीं ठहराया जा सकता। संचार प्रधान वर्तमान दौर में उस अखबार के कृत्यों के खिलाफ एक जनमत खड़ा किया जा सकता था। उसके पत्रकारों को असहिष्णु और दूसरे धर्मों का आदर न करने वाला घोषित किया जा सकता था। बातों और मुलाकातोें से भी बात बन सकती थी। बहुत रास्ते थे। लेकिन निहत्थे लोगों पर अचानक बंदूक की गोलियों की बौछार, नितांत कायराना हरकत है। मुस...