बर्बर और निंदनीय
इस्लाम का शाब्दिक अर्थ है ’शांति’। लेकिन इस धरती पर सर्वाधिक रक्तपात #ISLAM के नाम पर ही हुआ है। इस्लाम के स्वयंभू जिहादियों ने एक बाद फिर पैगंबर के अपमान का बदला लेने के लिए पेरिस में दस निहत्थे पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया। अभी पाकिस्तान में स्कूल के बच्चों का कत्लेआम धुधलाया भी न था कि पेरिस में घटना घट गई। इस बर्बर कृत्य की जितनी निंदा की जाए कम है। यह तथ्य भी अपनी जगह है कि लगातार मिल रही चेतावनियों के बावजूद अखबार ऐसे कार्टून छाप रहा था जिससे अल्लाह के बंदों की भावनाएं आहत हो रही थीं। निसंदेह अखबार की गलती थी और उसके किए को उचित नहीं ठहराया जा सकता लेकिन आज के इस दौर में बौद्धिक आक्रमण का जवाब गोलीबारी से देना भी कहीं से जायज नहीं ठहराया जा सकता। संचार प्रधान वर्तमान दौर में उस अखबार के कृत्यों के खिलाफ एक जनमत खड़ा किया जा सकता था। उसके पत्रकारों को असहिष्णु और दूसरे धर्मों का आदर न करने वाला घोषित किया जा सकता था। बातों और मुलाकातोें से भी बात बन सकती थी। बहुत रास्ते थे। लेकिन निहत्थे लोगों पर अचानक बंदूक की गोलियों की बौछार, नितांत कायराना हरकत है। मुस्लिम विद्वानों सहित सभी इस घटना की निंदा कर रहे हैं पर क्या यह निंदा पर्याप्त है। क्या उन अपराधियों को इस्लामिक जगत स्वयं पकड़ कर पेरिस पुलिस को सौंपेगा? क्या इस कृत्य को इस्लाम विरुद्ध करार दिया जाएगा? यह भी अपनी जगह सही है कि पश्चिमी राष्ट्रों की हस्तक्षेप की नीतियों से कई मुस्लिम राष्ट्र खासे खफा रहते हैं। कई मुस्लिम विद्वानों की शिकाय है कि पश्चिमी जगत इस्लामिक मान्यताओं की खिल्ली उड़ाता है तो प्रतिक्रिया में ऐसी हिसंक घटनाएं होती हैं। लेकिन फिर पाकिस्तान में स्कूल के बच्चे तो उनके अपने मजहब से ही ताल्लुक रखते थे। हमें समझना होगा कि हिंसा एक ऐसी वृत्ति है जो एक बार पनप जाए तो अपना पराया नहीं देखती। हिंसा अपना अस्तित्व प्रकट करने के लिए बहाने खोजती है। यदि केवल अपमान की ही बात है तो यह भी देखना होगा कि मुस्लिम जगत गैर मुस्लिमों के धार्मिक विश्वासों के साथ कैसा व्यवहार करता है। अतः बात है मूलभूत मान्यताओं में सुधारों की, अपने से अलग धार्मिक मान्यताओं और विश्वासों को सहन करने, उनका सम्मान करने की। जब तक पश्चिम और इस्लामिक जगत यह नहीं सीखता तब तक ऐसी घटनाएं रोकना असंभव है। हे प्रभो, इस दास की इतनी विनय सुन लिजिये...
स्कूल की परीक्षाओं और तनाव को लेकर एक छात्र द्वारा भगवान से की जा रही प्रार्थना एक अज्ञात कवि के शब्दों में-- हे प्रभो, इस दास की इतनी विनय सुन लीजिये, मार ठोकर नाव मेरी पार ही कर दीजिये ! मैं नहीं डरता, प्रलय से, मौत या तूफ़ान से, रूह मेरी कांपती है, बस सदा इम्तेहान से ! पाठ पढ़ना, याद करना, याद करके सोचना, सोच कर लिखना उसे, लिख कर उसे फिर घोटना, टाय टाटा टाय टाटा रोज़ रटता हूँ प्रभु, रात दिन पुस्तकों के पन्ने उलटता हूँ प्रभु, किन्तु जाने भाग्य में यह कौन सा अभिशाप है रात भर रटता, सुबह मैदान मिलता साफ़ है ! पी गयी इंग्लिश हमारे खोपड़ी के खून को, मैं समझ पाया नहीं इस बेतुके मजमून को, सी.यू.टी कट है तो पी.यु.टी पुट कैसे हो गया, एस.ओ. सो है तो डी.ओ डू क्यों कर हो गया ! नाइफ में न जाने ‘के’ कहाँ से आ गया बस यही बात भेजा मेरा खा गया ! गणित के अतिरिक्त मुझे और कुछ भाता नहीं, पर क्या करूँ गुणा करना मुझे आता नहीं, अक्ल मेरी एलजेबरा जड़ से जाएगा पचा तीन में से छह गए तो और क्या बाकी बचा, नाश हो इतिहास का सन के समुन्दर बह गए, मर गए वो लोग, रोने के लिए...
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