गंगा पर चिंतित न्यायालय

हम भारतवासियों के लिए ’गंगा’ शब्द का श्रवण या उच्चारण ऐसा भावनात्मक वायुमंडल पैदा करता है जैसे हम अपने मूलाधार से मिल रहे हों। गंगा को हमने नदी नहीं, मां माना है और गंगा जल को अमृत तुल्य। लेकिन काल के प्रवाह ने ऐसा उपभोक्तावाद हमारे मन-मस्तिष्क में स्थापित किया कि मां गंगा भयानक प्रदूषण से कराह उठी। तीस वर्ष पूर्व हमारा ध्यान गंगा को साफ करने की ओर गया तो हमने कुछ प्रयास प्रारंभ किये। लेकिन इन तीस वर्षों में जनता द्वारा मेहनत से कमाए गए लगभग दो हजार करोड़ रुपये तो सरकारी खाते से निकल गए लेकिन गंगा पहले से और अधिक गंदी ही नहीं हुई बल्कि कहीं-कहीं तो अपनी प्रासंगिकता भी खो बैठी। अब जब इस गंभीर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की खिंचाई की और पूछा कि क्या इसी सरकार के कार्यकाल में गंगा की सफाई हो पाएगी? इस प्रश्न के पीछे कोर्ट की भावना सरकार को समय सीमा में बांधना तो है ही साथ ही इसे चुनावी भावनात्मक मुद्दा बनने से रोकना भी है। सरकार ने संभावना व्यक्त की है कि 2018 तक वह गंगा की सफाई का कार्य पूरा कर लेगी। ऐसे मामलों में सरकारों के आश्वासन कोई भरोसा पैदा नहीं करते। जनता ऐसे आश्वासनों की हकीकत बेहतर समझती है। लेकिन हो सकता है वर्तमान सरकार की कथनी और करनी में अंतर न हो। हालांकि सरकार में गंगा सफाई को लेकर एक मंत्रालय अलग से स्थापित किया गया है जिसने गंगा सफाई को ’प्रोजेक्ट’ से ’मिशन’ बनाने की ओर कदम बढ़ाया है। फिर भी इसके लिए बड़े पैमाने पर जन सहभागिता और जनजागरण अति आवश्यक है। इस सफाई अभियान की बड़ी समस्या है अनेक स्थानों पर गंगा जल का अभाव। दूसरी समस्या है उत्तराखण्ड में बनाए गए बांध और वहां गंगा की सहायक नदियों पर प्रायोजित अतिक्रमण। वास्तव में तो गंगा अपना स्वरूप ही खो बैठी है। जिस महत्वपूर्ण नदी के किनारे देश की चालीस प्रतिशत आबादी निवास करती हो और वह आबादी उस पवित्र नदी के महत्व और उसकी उपयोगिता को समझने और मानने की विवेक बुद्धि खो बैठी हो उसे पुराने स्वरूप में पुर्नस्थापित करना आसान काम नहीं है लेकिन फिर भी यह करना भारत के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। केवल हिंदू ही नहीं, गंगा मुस्लिम शासकों से लेकर अंग्रेजों तक को आकर्षित करती रही है, इसलिए दुनिया में भारत की सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित गंगा की सफाई के लिए समयबद्धता बहुत आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट ने यही करने की कोशिश की है।

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