सार्वजनिक जीवन में साख और नाक

सब चलता है..., कौन पूछता है..., जैसे अनेक ऐसे जुमले हैं जो हम भारतीयों को अनेक आवश्यक नियमों, कानूनों और मर्यादाओं की उपेक्षा करके, अपने तात्कालिक स्वार्थ को साधने और मतलब निकालने में माहिर बनाते हैं, साथ ही जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह भी। यह लापरवाही तब भारी पड़ जाती है जब व्यक्ति किसी संवैधानिक दायित्व पर पहुंच जाता है। ऐसे ही जुमलों से प्रेरित लापरवाहियों से रचे चक्रव्यूह में भाजपा की तीन प्रमुख नेत्रियां फिलहाल फंसी हुई नजर आ रही हैं। संसद का वर्तमान सत्र इन्हीं की नादानियों पर आधारित कांग्रेस द्वारा की जा रही महानादानी के कारण बाधित है। ऐसे ही चला तो इस सत्र में देश की जनता का लगभग 200 करोड़ रुपया यूंही बर्बाद हो जाएगा। केंद्रिय मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कभी नहीं सोचा होगा कि उन्हें ललित मोदी से दोस्ती निभाना इस कदर फजीहत में डाल देगा। उसी प्रकार केंद्रिय मंत्री स्मृति ईरानी की शिक्षा का सवाल भी ऐसी ही लापरवाही का नतीजा है। ऐसा नहीं है कि ऐसे विवाद पहले नहीं उठे हैं। राहुल गांधी की शिक्षा को लेकर अनेक भ्रम आज भी प्रचलित हैं। लेकिन इस विवाद का एक अच्छा पहलू यह है कि अब सार्वजनिक जीवन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं से जुड़ी प्रत्येक छोटी-बड़ी जानकारी के संबंध में स्पष्ट रहना होगा अर्थात स्वयंसिद्ध शुचिता का पालन करना होगा। राजनीतिक क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए तो यह बहुत ही आवश्यक बात है। जाहिर है इस विवाद का असर आम समाज पर भी पड़ेगा। इस विवाद का दूसरा अच्छा पहलू यह है कि अब राजनीतिक व्यक्तियों विशेषकर संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने वाले विशिष्ट राजनीतिज्ञों के लिए अब अपने पद का दुरुपयोग करते हुए मित्रता या रिश्तेदारी निभाना कठिन हो जाएगा। यह कहना कि इस समय विपक्ष के पास सरकार का विरोध करने के लिए कोई ठोस कारण नहीं है इसलिए वह ऐसे मामले उछाल रहा है, ठीक नहीं है। विपक्ष का काम है सरकार की कमियों को सार्वजनिक करना और उन कमियों को दुरुस्त करने के लिए सरकार को बाध्य करना। यह प्रकरण इस बात को भी प्रमाणित कर रहा है कि भारत में लोकतंत्र लगातार मजबूत हो रहा है। प्रचण्ड बहुमत और लोकप्रियता वाली मोदी सरकार को काफी कमजोर विपक्ष ने नैतिकता के आधार पर भारी परेशानी में डाल दिया है। इससे पता लगता है कि साख और नाक आज भी भारत में काफी महत्व रखते हैं। इसे भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती के रूप में भी देखा जा सकता है।    

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