बेखौफ मिलावटखोर
मिलावट का गोरखधंधा जिस प्रकार भारत में जितना कुख्याती के साथ फला-फूला है वैसा शायद ही किसी अन्य देश में देखने को मिले। दुनिया को नैतिकता, आदर्श और मानव कल्याण का पाठ पढ़ाने की समृद्ध सांस्कृतिक थाती पर इतराने वाले हम भारतवासी किस ऐसे तत्व को भूल गए हैं कि हमारा पूरा जीवन ही मिलावट का शिकार हो गया है। फिलहाल मिलावटी शराब से मरने वालों की गिनती हो रही है। इससे पूर्व बच्चों की पहली पसंद बन चुके मैगी नूडल्स मैं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्व पाए गए थे। दूध में हानिकारक रसायनों के बाने में देश के सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी कि क्या दूध में सायनाइड मिलाया जाए, जिसे पीकर लोग तुरंत मरने लगें, तब सरकार कोई कानून बनाएगी, परिस्थितियों की गंभीरता को दर्शाती है। हमारे भोजन की थाली कैसे जहरीली हो गई है इस बारे में मीडिया में अक्सर खबरें आती रहती हैं। इसका अर्थ है कि रोटी, सब्जी, दाल, चावल, मसाले तक जानलेवा मिलावट के शिकार हैं। जीवन रक्षक दवाएं तक मिलावट से बच नहीं पा रही हैं। आज मरीज को पता नहीं है कि जिस दवा को वह अपनी जीवन रक्षा या स्वास्थ्य लाभ के लिए खा रहा है वह उसे बचाएगी या मौत के रास्ते पर ले जाएगी। अस्पतालों में बड़ी संख्या में लीवर और किडनी फेल होने के मामले आ रहे हैं, वहीं कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी अपने पैर पसार रही है। जिसका प्रमुख कारण खाद्य वस्तुओं में अखाद्य पदार्थों की मिलावट। आखिर यह मिलावट किस लिए? एकमात्र उत्तर है, अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के लिए। आधारभूत निर्माण कार्यों में प्रयोग होने वाली सामग्री हो, खाद्य वस्तुएं हों या जान बचाने वाली दवाइयां हों, जहां भी संभव है वहां मिलावट का खेल जारी है। सरकार दशकों में दो-चार दिन के लिए चेतती है और समाज इस मामले में कुछ विशेष करने की परिस्थितियों में है नहीं। ऐसा नहीं है कि सरकार को कुछ पता नहीं है। हकीकत यह है कि आम जनता के स्वास्थ्य और सेहत से जुड़ा यह मुद्दा हमारी सरकारों की प्राथमिकता में ही नहीं है। दूसरी ओर भ्रष्ट नौकरशाही, परिस्थितियों की गंभीरता को और बड़ा रही है। अतः इस मोर्चे पर लंबी लड़ाई शुरू होना अभी बाकी है।
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