भारत की सामूहिक चेतना की सूत्रधार है हिन्दी


पिछले दिनों 10वां विश्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल में संपन्न हुआ। तीन दिन में कुल बारह विभिन्न विषयों पर देश के वरिष्ठ हिंदी सेवियों ने हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए चिंतन किया। इस चिंतन-मंथन से जो मक्खन निकला वह निश्चित ही देश-विदेश में हिन्दी के व्यावहारिक विस्तार में सहायक तो होगा ही साथ ही हिन्दी का मान-सम्मान बढ़ाने में उपयोगी सिद्ध होगा।
हिन्दी जगत इस बात से किसी हद तक संतुष्ट हो सकता है कि कुछ वर्ष पहले तक हिन्दी के प्रति देखा जाने वाला उपेक्षाभाव अब कहीं तिरोहित हो चला है। पिछले कुछ समय से हिन्दी के प्रति जो स्वीकार्यता देखी जा रही है वह निष्चित ही संतोष देने वाली है लेकिन अभी हिन्दी को बड़ा रास्ता तय करना है। दरअसल हिन्दी जगत को हिन्दी की प्रतिष्ठा के लिए बड़े और वास्तविक जोखिम उठाने होंगे। जिस प्रकार हिन्दी प्रेमी युवा अब अपने काम-काज की राहें अंग्रेजी भाषा के स्थान पर हिन्दी भाषा में तलाशनें का जोखिम उठाने लगे हैं और सफलता भी प्राप्त करने लगे हैं, इस बदलती मानसिकता ने हिन्दी को काफी आगे बढ़ाया है। अंग्रेजी भाषियों के सामने ही उन्हीं के स्तर पर खड़े होकर बिना किसी हिचक या मानसिक दबाव के अब हिन्दी भाषी भी गर्व के साथ विचारों का आदान प्रदान हिन्दी भाषा में ही करने लगे हैं। यही कारण है कि मीडिया और संचार माध्यमों में हिन्दी का महत्व लगातार स्थापित हुआ है। वहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां तक बिना हिन्दी भाषा के भारत में अपने पैर जमाने में भारी कठिनाई महसूस कर रही हैं। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड जैसे देशों ने अपने यहां हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए बड़े स्तर पर प्रयास प्रारंभ किए हैं। कई देशों ने तो हिन्दी सीखने के लिए व्यवस्थित अध्ययन केंद्रों की स्थापना की है। इसके साथ ही आधुनिक सोशल मीडिया ने भी हिन्दी के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वहां पर लोगों ने बड़े पैमाने पर हिन्दी में अपने विचारों और समाचारों को अभिव्यक्त करना प्रारंभ किया है। निःसंदेह भारत को समझने के लिए हिन्दी सीखने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। हिन्दी सिनेमा, वाट्सएप, फेसबुक जैसे माध्यमों ने हिन्दी की लोकप्रियता स्थापित करने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यद्यपि देश में अभी भी हिन्दी संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार नहीं हो सकी है तथापि यह मान्यता बन रही है कि अब पूरे देश में हिन्दी बोली और समझी जाने लगी है और उसके विरोध का स्वर काफी मंद पड़ा है। हिन्दी न अब बेचारी है और न ही अन्य भारतीय भाषाओं की विरोधी। केंद्रीय हिंदी संस्थान जैसे संस्थानों के प्रयासों से आज हिंदी देश के कौने-कौने में बोली और समझी जा रही है। अतः अब यह कहा जा सकता है कि अब हिन्दी ने स्वयं को भारत की संपर्क भाषा के रूप में अपने को स्थापित करना प्रारंभ कर दिया है। यदि निकट भविष्य में ऐसा हो पाया तो वह दिन दूर नहीं जब हिन्दी देश की सामूहिक चेतना की सूत्रधार के रूप में प्रतिष्ठित होगी। 

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