हे प्रभो, इस दास की इतनी विनय सुन लिजिये...

स्कूल की परीक्षाओं और तनाव को लेकर एक छात्र द्वारा भगवान से की जा रही प्रार्थना एक अज्ञात कवि के शब्दों में--
हे प्रभो, इस दास की
इतनी विनय सुन लीजिये,
मार ठोकर नाव मेरी
पार ही कर दीजिये !
मैं नहीं डरता,
प्रलय से,
मौत या तूफ़ान से,
रूह मेरी कांपती है,
बस सदा इम्तेहान से !
पाठ पढ़ना, याद करना,
याद करके सोचना,
सोच कर लिखना उसे,
लिख कर उसे फिर घोटना,
टाय टाटा टाय टाटा
रोज़ रटता हूँ प्रभु,
रात दिन पुस्तकों के
पन्ने उलटता हूँ प्रभु,
किन्तु जाने भाग्य में
यह कौन सा अभिशाप है
रात भर रटता,
सुबह मैदान मिलता साफ़ है !
पी गयी इंग्लिश हमारे
खोपड़ी के खून को,
मैं समझ पाया नहीं
इस बेतुके मजमून को,
सी.यू.टी कट है तो पी.यु.टी पुट कैसे हो गया,
एस.ओ. सो है तो डी.ओ डू क्यों कर हो गया !
नाइफ में न जाने ‘के’ कहाँ से आ गया
बस यही बात भेजा मेरा खा गया !
गणित के अतिरिक्त मुझे
और कुछ भाता नहीं,
पर क्या करूँ
गुणा करना मुझे आता नहीं,
अक्ल मेरी एलजेबरा जड़ से जाएगा पचा
तीन में से छह गए तो और क्या बाकी बचा,
नाश हो इतिहास का
सन के समुन्दर बह गए,
मर गए वो लोग,
रोने के लिए हम रह गए,
शाहजहाँ, अकबर, हुमायूं और बाबर आप था
कौन था बेटा न जाने कौन किसका बाप था !
भूगोल में था प्रश्न आया
गोल है कैसे धरा,
एक पल में लिख दिया
मैंने तभी उत्तर खरा,
गोल है पूड़ी, कचौड़ी और पापड़ गोल है
और , लड्डू गोल है, रसगुल्ला भी गोल है,
इसलिए मास्टर जी ये धरा भी गोल है।

झूम उठे मास्टर जी इस अनोखे ज्ञान से
और लिख दिया हमारी कॉपी पर ये शान से
ठीक है बेटा हमारी लेखनी भी गोल है,
गोल है दवात, नम्बर भी तुम्हारा गोल है !
राम रामौ राम रामौ हाय प्यारी संस्कृतम
तू न आती, मर गया मैं, रच कच कचूमरम,
चंड खंडम चंड खंडम चट पट चपाचटम
चट्ट रोटी, पट्ट दालम चट पट सफाचटम !
आ गया तेरी शरण
अब ज़िन्दगी से हार कर,
मार थप्पड़, लात घुसे, पर मुझे तू पास कर !!
हे प्रभो,
इस दास की
इतनी विनय सुन लिगिये,
मार ठोकर नाव मेरी
पार ही कर दीजिये !!!

(विनम्र निवेदन - यह कविता करीब 30-35 वर्ष पहले मैंने एक टीवी कार्यक्रम में इस कविता के लेखक द्वारा सुनी थी। तब बात आई गई हो गई। लेकिन इस कविता की कुछ पंक्तियां मन-मस्तिष्क मैं यह गयीं और समय-समय पर गुदगुदाती रही। चार-पांच वर्ष पूर्व इस कविता को इंटरनेट पर तलाशा तो कई महानुभावों के नामों से लिखी हुई यह कविता मिली, जिसमें उन्होंने अपनी ओर से भी कई परिवर्तन कर दिए थे। खैर, मुझे इस कविता के लेखक कवि महोदय का नाम तो अब याद नहीं है, जिनसे ये कविता मैंने पहली बार सुनी थी। इस कविता की उत्कृष्टता हास्य और मनोरंजन को ध्यान में रखकर इसके मूल लेखक को प्रणाम करते हुए, वह कविता आपके लिए प्रस्तुत  है। जो संशोधन किए गए, उनको मैंने हटा दिया है।)

Comments

Amit said…
Thanks for sharing this.
My mother had learnt this in her childhood and taught it.

Glad to find it on interwebs.
Savita said…
Yeh kavita Sw.Shri Om Prakash Aditya ji dwara rachit hai. Youtube par aaj bhi ap is kvita ko asli kavi ke muh se sun skte h..
Unknown said…
इस कविता के मूल लेखक आदरणीय "ओमप्रकाश आदित्य " जी हैं।
ASHISH said…
Is Poem k mool Writer Dr Ramnaval Chaubey Sir Hai...
raju badman said…
काका हाथरसी जी की कविता है, १९७६ मे हम लोग स्कूल मे सुनाते थे।
0000 said…
ओम प्रकाश आदित्य जी की क
विता है मेरे पास पूरी कविता है
Anonymous said…
I recited this during my school. Today, after so many years I was desperately searching this one for my daughter. Thanks for sharing.

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