महाराष्ट्र घटनाक्रम : मतदाताओं के लिए बड़ा सबक
महाराष्ट्र के राजनीतिक वायुमंडल में चल रही उठापटक ने देश के संवेदनशील लोगों को परेशान किया है। भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कार्यकर्ता और पार्टी के शुभचिंतक भी काफी परेशान और भ्रम की स्थिति में हैं। कई राजनीतिक विश्लेषकों से मेरी बात हुई तो उनकी टिप्पणी थी कि भाजपा अपने ही बुने जाल में उलझ गई और छीछालेदर करा बैठी है। लेकिन एक बड़ा वर्ग भी है जो ऐसा नहीं मानता। उस वर्ग की भावना को व्यक्त करता हुआ प्रस्तुत है सामाजिक कार्यकर्ता प्रमोद चौहान का यह संपादित आलेख -
महाराष्ट्र के घटनाक्रम को लेकर मेरी अनेक संघ/भाजपा समर्थकों से वार्ता हुई। मैंने अधिकतर को एक अजीब हारे हुए भाव से ग्रसित पाया।ऐसा लग रहा था जैसे भारतीय जनता पार्टी ने कोई महापाप कर दिया है जिसकी शर्मिंदगी का बोझ अपने सर पर उठा कर घूम रहे हैं।
एक राजनीतिक दल जो विचारधारा पर आधारित है उसके लिए दो बातें ही महत्वपूर्ण होती हैं। अपनी विचारधारा का रक्षण करना और उसे क्रियान्वयन की स्थिति में लाना तथा अपने समर्थक मतदाताओं के हितों की चिंता करना जिससे वह राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सके।
महाराष्ट्र के जब चुनाव परिणाम आए तो महाराष्ट्र की जनता ने स्पष्ट जनादेश, पूर्ण बहुमत के साथ गठबंधन के पक्ष में दिया था। भाजपा ने शिवसेना के साथ गठबंधन को बनाए रखने के लिए बड़ा त्याग किया था। ध्यान दें कि पिछली बार सभी सीटों पर लड़ कर 122 सीट अकेले प्राप्त करने वाली पार्टी भाजपा ने आधी सीटों को त्याग करके सिर्फ आधी सीटों पर चुनाव लड़कर 105 सीटें प्राप्त कीं। मेरा दृढ़ विश्वास है यदि भाजपा फिर से अपने दम पर अकेली ही सभी सीटों पर लड़ी होती तो इस बात की प्रबल संभावना थी कि पूर्व में जीती हुई 105 सीटों में से 25-30 सीटों पर वह हार सकती थी, लेकिन शेष अन्य सीटों में से वह 50 से 60 नयी सीटें तो कम से कम जीत जाती और इस प्रकार वह अकेले दम पर ही बहुमत के अत्यंत निकट होती अथवा बहुमत प्राप्त कर लेती।
भाजपा ने यह बलिदान सिर्फ और सिर्फ समान विचारधारा की पार्टी शिवसेना को अपने साथ रखने के लिए और विचारधारा को किसी भी स्थिति में न छोड़ने के लिए ही किया। परंतु उसके सभी प्रयास और समझौते तब धरे के धरे रह गए जब मुख्यमंत्री की कुर्सी के लालच और अति महत्वाकांक्षा में शिवसेना ने विचारधारा से गद्दारी कर दी।
शिवसेना द्वारा, भाजपा से आधी सीटें जीत कर भी मुख्यमंत्री पद पर दावा किया जाना कतई उचित नहीं था। निश्चित ही भाजपा ने किसी भी स्थिति में शिवसेना को अपने साथ रखने के भरसक प्रयास किए होंगे, सिवाय उसे मुख्यमंत्री पद ढाई वर्ष के लिए देने के।
जब सामान्य राजनीतिक परंपरा का पालन करते हुए विचारधारा को तिलांजलि देकर, सिद्धांत हीन, विचारधारा से रहित जिन दलों का विरोध करते हुए शिवसेना ने राजनीति की ऊंचाइयां प्राप्त की, उन्हीं दलों से समझौता करके भी शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद प्राप्त करने की अंधी लालसा दिखाई तो भारतीय जनता पार्टी के लिए कोई मार्ग शेष नहीं बचा था।
ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी को यह सुनिश्चित करना था कि जिन मतदाताओं ने उसे सरकार बनाने का जनादेश दिया है और जिस विचारधारा के लिए वह कार्य करती है उसका ध्यान रखना उसका प्रथम कर्तव्य है।भारतीय जनता पार्टी को किसी भी स्थिति में महाराष्ट्र को फिर से एक भ्रष्ट, सांप्रदायिक, और अराजक सरकार के नेतृत्व में जाने से रोकना चाहिए था, इसके लिए उसे अपने सभी प्रयास जो भी संभव थे करने चाहिए थे और भारतीय जनता पार्टी ने ऐसा किया भी। 5 वर्ष तक साफ-सुथरी सरकार देने के पश्चात अनेकों विकास कार्य विकास योजनाएं प्रारंभ करने के पश्चात और इन योजनाओं एवं विकास कार्यों को जारी रखने का जनादेश प्राप्त करने के बाद भी कोई कारण नहीं था कि महाराष्ट्र और महाराष्ट्र की जनता को एक मौकापरस्त अवसरवादी गठबंधन सरकार मिले, जिस में शामिल दल विचारधारा से लेकर आचरण तक में एक दूसरे से सर्वथा भिन्न हों। भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाने के जो भी प्रयास किए वह उसका दायित्व था।वास्तव में पराजय भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व की नहीं हुई यह महाराष्ट्र की जनता की पराजय है। वर्षों पहले एक फिल्म आई थी जिसका नाम था राजनीति फिल्म की हीरोइन नायिका कैटरीना कैफ रणवीर कपूर से प्रेम करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी लेकिन कैटरीना कैफ का के पिता जो की फिल्म में एक बड़े उद्योगपति थे और चाहते थे उनकी पुत्री की शादी मुख्यमंत्री पद के दावेदार से हो जो कि रणवीर कपूर का बड़ा भाई था और अपनी इच्छा ना होते हुए भी कैटरीना कैफ की शादी उसके पिता के द्वारा रणवीर कपूर के बड़े भाई से करा दी जाती है। धन, शक्ति का लालच इंसान को कहीं तक भी गिरा सकता है, यह हमने महाराष्ट्र के संपूर्ण घटनाक्रम में देखा है।
भाजपा के समर्थकों को बिल्कुल भी अपना मन दुखी नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें गर्व करना चाहिए कि आज जिस संगठन को वे भारत का राजनीतिक नेतृत्व करते हुए देखना चाहते हैं वह कमजोर नहीं रहा, आज वह सब प्रकार से संघर्ष करता है, जिससे कि उस विचारधारा की रक्षा कर सकें, जिस विचारधारा की रक्षा करने के लिए हम उसका समर्थन करते हैं।
सोच कर देखिए क्या भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में सरकार बनाने में सफल हो जाती तो आप खुश होते अथवा नहीं होते, यदि हां, तो विचार करिए क्या हम सिर्फ सुख के साथी हैं, क्या हम सिर्फ विजय के साथी हैं? विचारधारा के संघर्ष में जय पराजय दोनों क्षण आएंगे जितने प्रसन्न मन से हम विजय का आनंद उठाते हैं उतने ही बड़े मन से पराजय को भी स्वीकार करना होगा। आगे ऐसी परिस्थितियां ना बनें इसके लिए भी कमर कसकर तैयार रहना होगा।
- प्रमोद चौहान
महाराष्ट्र के घटनाक्रम को लेकर मेरी अनेक संघ/भाजपा समर्थकों से वार्ता हुई। मैंने अधिकतर को एक अजीब हारे हुए भाव से ग्रसित पाया।ऐसा लग रहा था जैसे भारतीय जनता पार्टी ने कोई महापाप कर दिया है जिसकी शर्मिंदगी का बोझ अपने सर पर उठा कर घूम रहे हैं।
एक राजनीतिक दल जो विचारधारा पर आधारित है उसके लिए दो बातें ही महत्वपूर्ण होती हैं। अपनी विचारधारा का रक्षण करना और उसे क्रियान्वयन की स्थिति में लाना तथा अपने समर्थक मतदाताओं के हितों की चिंता करना जिससे वह राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सके।
महाराष्ट्र के जब चुनाव परिणाम आए तो महाराष्ट्र की जनता ने स्पष्ट जनादेश, पूर्ण बहुमत के साथ गठबंधन के पक्ष में दिया था। भाजपा ने शिवसेना के साथ गठबंधन को बनाए रखने के लिए बड़ा त्याग किया था। ध्यान दें कि पिछली बार सभी सीटों पर लड़ कर 122 सीट अकेले प्राप्त करने वाली पार्टी भाजपा ने आधी सीटों को त्याग करके सिर्फ आधी सीटों पर चुनाव लड़कर 105 सीटें प्राप्त कीं। मेरा दृढ़ विश्वास है यदि भाजपा फिर से अपने दम पर अकेली ही सभी सीटों पर लड़ी होती तो इस बात की प्रबल संभावना थी कि पूर्व में जीती हुई 105 सीटों में से 25-30 सीटों पर वह हार सकती थी, लेकिन शेष अन्य सीटों में से वह 50 से 60 नयी सीटें तो कम से कम जीत जाती और इस प्रकार वह अकेले दम पर ही बहुमत के अत्यंत निकट होती अथवा बहुमत प्राप्त कर लेती।
भाजपा ने यह बलिदान सिर्फ और सिर्फ समान विचारधारा की पार्टी शिवसेना को अपने साथ रखने के लिए और विचारधारा को किसी भी स्थिति में न छोड़ने के लिए ही किया। परंतु उसके सभी प्रयास और समझौते तब धरे के धरे रह गए जब मुख्यमंत्री की कुर्सी के लालच और अति महत्वाकांक्षा में शिवसेना ने विचारधारा से गद्दारी कर दी।
शिवसेना द्वारा, भाजपा से आधी सीटें जीत कर भी मुख्यमंत्री पद पर दावा किया जाना कतई उचित नहीं था। निश्चित ही भाजपा ने किसी भी स्थिति में शिवसेना को अपने साथ रखने के भरसक प्रयास किए होंगे, सिवाय उसे मुख्यमंत्री पद ढाई वर्ष के लिए देने के।
जब सामान्य राजनीतिक परंपरा का पालन करते हुए विचारधारा को तिलांजलि देकर, सिद्धांत हीन, विचारधारा से रहित जिन दलों का विरोध करते हुए शिवसेना ने राजनीति की ऊंचाइयां प्राप्त की, उन्हीं दलों से समझौता करके भी शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद प्राप्त करने की अंधी लालसा दिखाई तो भारतीय जनता पार्टी के लिए कोई मार्ग शेष नहीं बचा था।
ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी को यह सुनिश्चित करना था कि जिन मतदाताओं ने उसे सरकार बनाने का जनादेश दिया है और जिस विचारधारा के लिए वह कार्य करती है उसका ध्यान रखना उसका प्रथम कर्तव्य है।भारतीय जनता पार्टी को किसी भी स्थिति में महाराष्ट्र को फिर से एक भ्रष्ट, सांप्रदायिक, और अराजक सरकार के नेतृत्व में जाने से रोकना चाहिए था, इसके लिए उसे अपने सभी प्रयास जो भी संभव थे करने चाहिए थे और भारतीय जनता पार्टी ने ऐसा किया भी। 5 वर्ष तक साफ-सुथरी सरकार देने के पश्चात अनेकों विकास कार्य विकास योजनाएं प्रारंभ करने के पश्चात और इन योजनाओं एवं विकास कार्यों को जारी रखने का जनादेश प्राप्त करने के बाद भी कोई कारण नहीं था कि महाराष्ट्र और महाराष्ट्र की जनता को एक मौकापरस्त अवसरवादी गठबंधन सरकार मिले, जिस में शामिल दल विचारधारा से लेकर आचरण तक में एक दूसरे से सर्वथा भिन्न हों। भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाने के जो भी प्रयास किए वह उसका दायित्व था।वास्तव में पराजय भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व की नहीं हुई यह महाराष्ट्र की जनता की पराजय है। वर्षों पहले एक फिल्म आई थी जिसका नाम था राजनीति फिल्म की हीरोइन नायिका कैटरीना कैफ रणवीर कपूर से प्रेम करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी लेकिन कैटरीना कैफ का के पिता जो की फिल्म में एक बड़े उद्योगपति थे और चाहते थे उनकी पुत्री की शादी मुख्यमंत्री पद के दावेदार से हो जो कि रणवीर कपूर का बड़ा भाई था और अपनी इच्छा ना होते हुए भी कैटरीना कैफ की शादी उसके पिता के द्वारा रणवीर कपूर के बड़े भाई से करा दी जाती है। धन, शक्ति का लालच इंसान को कहीं तक भी गिरा सकता है, यह हमने महाराष्ट्र के संपूर्ण घटनाक्रम में देखा है।
भाजपा के समर्थकों को बिल्कुल भी अपना मन दुखी नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें गर्व करना चाहिए कि आज जिस संगठन को वे भारत का राजनीतिक नेतृत्व करते हुए देखना चाहते हैं वह कमजोर नहीं रहा, आज वह सब प्रकार से संघर्ष करता है, जिससे कि उस विचारधारा की रक्षा कर सकें, जिस विचारधारा की रक्षा करने के लिए हम उसका समर्थन करते हैं।
सोच कर देखिए क्या भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में सरकार बनाने में सफल हो जाती तो आप खुश होते अथवा नहीं होते, यदि हां, तो विचार करिए क्या हम सिर्फ सुख के साथी हैं, क्या हम सिर्फ विजय के साथी हैं? विचारधारा के संघर्ष में जय पराजय दोनों क्षण आएंगे जितने प्रसन्न मन से हम विजय का आनंद उठाते हैं उतने ही बड़े मन से पराजय को भी स्वीकार करना होगा। आगे ऐसी परिस्थितियां ना बनें इसके लिए भी कमर कसकर तैयार रहना होगा।
- प्रमोद चौहान
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