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Showing posts from July, 2015

सार्वजनिक जीवन में साख और नाक

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सब चलता है..., कौन पूछता है..., जैसे अनेक ऐसे जुमले हैं जो हम भारतीयों को अनेक आवश्यक नियमों, कानूनों और मर्यादाओं की उपेक्षा करके, अपने तात्कालिक स्वार्थ को साधने और मतलब निकालने में माहिर बनाते हैं, साथ ही जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह भी। यह लापरवाही तब भारी पड़ जाती है जब व्यक्ति किसी संवैधानिक दायित्व पर पहुंच जाता है। ऐसे ही जुमलों से प्रेरित लापरवाहियों से रचे चक्रव्यूह में भाजपा की तीन प्रमुख नेत्रियां फिलहाल फंसी हुई नजर आ रही हैं। संसद का वर्तमान सत्र इन्हीं की नादानियों पर आधारित कांग्रेस द्वारा की जा रही महानादानी के कारण बाधित है। ऐसे ही चला तो इस सत्र में देश की जनता का लगभग 200 करोड़ रुपया यूंही बर्बाद हो जाएगा। केंद्रिय मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कभी नहीं सोचा होगा कि उन्हें ललित मोदी से दोस्ती निभाना इस कदर फजीहत में डाल देगा। उसी प्रकार केंद्रिय मंत्री स्मृति ईरानी की शिक्षा का सवाल भी ऐसी ही लापरवाही का नतीजा है। ऐसा नहीं है कि ऐसे विवाद पहले नहीं उठे हैं। राहुल गांधी की शिक्षा को लेकर अनेक भ्रम आज भी प्रचलित हैं। लेकिन इस विवाद...

भाजपा और कांग्रेस में बढ़ती दूरियां

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भारत के वर्तमान राजनीतिक हालातों में फिलहाल यही समझ आ रहा है कि केंद्र में या तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनेगी या भाजपा के। लेकिन ये दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां देश में जिस राजनीतिक विघटन की नींव रखती नजर आ रही हैं वह किसी के हित में नहीं है। दोनों ही पार्टियां एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में लगी हैं वह राजनीतिक विश्लेषकों को भी चिंता में डालने वाला है। ऐसा नहीं है कि यह देश स्वस्थ राजनीतिक संस्कृति और परंपराओं का साक्षी नहीं रहा है। लेकिन यूपीए सरकार के कार्यकाल और अब एनडीए सरकार के समय जिस प्रकार देश की सर्वोच्च पंचायत, राजनीतिक पार्टियों की मनमानी का शिकार हो रही है वह चिंता में डालने वाला घटनाक्रम है। यूपीए सरकार के समय संसदीय सत्रों को जिस प्रकार भाजपा बाधित करती थी लगभग उसी रास्ते पर अब कांग्रेस भी चल रही है। उलटबांसियों के इस खेल को देश का नागरिक बड़ी लाचारी और हताशा के साथ देख रहा है और राजनीति में पक्ष और विपक्ष के बीच बढ़ती दूरियां और पनपती अस्वीकार्यता के कारणों को जानने का प्रयास कर रहा है। इन दूरियों के अपने खतरे हैं। इन खतरों के परिणाम बहुत गहरे हैं। लोकतांत...

आईटीआई का महत्व

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान की देश को आईआईटी नहीं बल्कि आईटीआई की जरूरत है, धरातलीय परिस्थितियों के मद्देनजर काफी महत्वपूर्ण है। उपेक्षा और भ्रष्टाचार का शिकार हो रहे आईटीआई के तंत्र को विशेष महत्व का क्षेत्र बनाने में प्रधानमंत्री का यह बयान मील का पत्थर साबित होगा ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। आर्थिक विशेषज्ञों का भी मानना है कि देश के आर्थिक विकास के लक्ष्यों को तेजी से हांसिल करने के लिए नए रोजगार पैदा करना एक बड़ी चुनौती है। देश में युवाओं की संख्या को देखते हुए सभी को बड़े पदों पर समायोजित करना असंभव ही है। अतः इंजीनियरों की अपेक्षा कुशल और दक्ष श्रम शक्ति तो आईटीआई से ही मिल सकती है। वैसे भी एक इंजीनियर के साथ दस-बीस आईटीआई प्रशिक्षितों की आवश्यकता रहती है। लेकिन पिछले दो दशकों से निजि क्षेत्र के इंजीनियरिंग काॅलेजों से जिस प्रकार से इंजीनियरों की बड़ी संख्या निकली है, लेकिन गुणवत्ता के लिहाज से बाजार में उन्हें नौकरी के लायक ही नहीं समझा जा रहा। अतः आईटीआई के मामले में यह सतर्कता बड़ी कड़ाई के साथ बरतनी होगी कि वहां गुणवत्ता के मामले में समझौता न हो, तभी बात बन सकेगी। दूसरी...

बेखौफ मिलावटखोर

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मिलावट का गोरखधंधा जिस प्रकार भारत में जितना कुख्याती के साथ फला-फूला है वैसा शायद ही किसी अन्य देश में देखने को मिले। दुनिया को नैतिकता, आदर्श और मानव कल्याण का पाठ पढ़ाने की समृद्ध सांस्कृतिक थाती पर इतराने वाले हम भारतवासी किस ऐसे तत्व को भूल गए हैं कि हमारा पूरा जीवन ही मिलावट का शिकार हो गया है। फिलहाल मिलावटी शराब से मरने वालों की गिनती हो रही है। इससे पूर्व बच्चों की पहली पसंद बन चुके मैगी नूडल्स मैं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्व पाए गए थे। दूध में हानिकारक रसायनों के बाने में देश के सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी कि क्या दूध में सायनाइड मिलाया जाए, जिसे पीकर लोग तुरंत मरने लगें, तब सरकार कोई कानून बनाएगी, परिस्थितियों की गंभीरता को दर्शाती है। हमारे भोजन की थाली कैसे जहरीली हो गई है इस बारे में मीडिया में अक्सर खबरें आती रहती हैं। इसका अर्थ है कि रोटी, सब्जी, दाल, चावल, मसाले तक जानलेवा मिलावट के शिकार हैं। जीवन रक्षक दवाएं तक मिलावट से बच नहीं पा रही हैं। आज मरीज को पता नहीं है कि जिस दवा को वह अपनी जीवन रक्षा या स्वास्थ्य लाभ के लिए खा रहा है वह उसे बचाएगी या मौत के रास्त...

बुजुर्ग और उनकी तनहाई

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              old age & loneliness स्वास्थ्य सेवाओं में हुए क्रांतिकारी विकास ने मनुष्य की औसत आयु में जबरदस्त इजाफा किया है। इसके कारण इस खूबसूरत लेकिन नश्वर संसार में इंसान का जीवन लगातार लंबा हो रहा है। निश्चित ही यह सभी को अच्छी लगने वाली महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस उपलब्धि ने संसार में बुजुर्गों की संख्या में भी जबरदस्त इजाफा किया है। एक अनुमान के अनुसार आगामी पैंतीस वर्षें में इस धरती पर बुजुर्गों की संख्या बीस अरब का आंकड़ा पार कर जाएगी। जाहिर है उनके ऊपर होने वाले खर्च में भी इजाफा होगा। हो सकता है आर्थिक दबाव के उस इजाफे को दुनिया वहन कर ले, लेकिन उनके भावनात्मक पहलू की समस्याएं निश्चित ही गंभीर होती जाएंगी। हाल ही में खबर आई है कि जापान में एक अस्सी वर्षीय बुजुर्ग की मृत्यु का पता एक माह बाद लग सका, जबकि उसके बच्चे उसके अपार्टमेंट के किराए और अन्य खर्चों को लगातार उठाते रहे। तनहाई में ऐसी मौतों की संख्या दुनिया भर में लगातार बढ़ रही है, भारत भी इससे अछूता नहीं है। यह अपने तरह की समस्या है। जिस रास्ते पर यह दुनिया जाती दिख ...

मौलाना को सजा का संदेश

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पाकिस्तान में आतंकवाद निरोधी एक अदालत ने एक मस्जिद के धर्मगुरू अब्दुल गनी को दस वर्ष कारावास और साढ़े सात लाख रुपयों की सजा सुनाई है। इस धर्मगुरू पर अवाम के बीच दूसरे धर्म के अनुनाइयों के प्रति नफरत फेलाने का गंभीर आराप था। खबर यह भी आई है कि ऐसे ही कुछ अन्य मामलों में कुछ और लोगों के विरुद्ध भी दंडात्मक कार्यवाही की गई है। जाहिर है पाकिस्तान में यह नई शुरूआत है जिसकी हर स्तर पर प्रशंसा करनी चाहिए। अभी तक पाकिस्तान पर इस बात के आरोप लगते रहे हैं कि वहां इस्लाम के अलावा दूसरे धर्म के अनुनाइयों के विरुद्ध माहौल रहता है, जिसके कारण उनके मानवाधिकारों का हनन हर कदम पर देखने को मिलता है। इस माहौल को बनाने में वहां के मुस्लिम धर्मगुरुओं को विशेष रूप से जिम्मेदार माना जाता है। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब आम जनता पर इन धर्मगुरुओं के गहरे प्रभाव के चलते वहां की सरकार उन पर लगाम लगाने में अपने को लाचार पाती है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार होने वा आलोचनाओं के बावजूद पाकिस्तान सरकार ऐसे मामलों में कोई ठोस कदम नहीं उठा पाती। इस लिहाज से वहां की अदालत द्वारा मौलाना को दी गई य...

डिजिटल इंडिया की चुनौतियां

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा डिजिटल इिंडिया का आगाज मुख्य रूप से भारत के गांवों और दूरदराज के इलाकों तक सूचना क्रांति की चमक को ले जाने का प्रयास ही नजर आ रहा है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। कई बड़े उद्योगपतियों का भी उन्हें पूरा साथ मिल रहा है। यदि यह अभियान सफलता की ओर बड़ता है तो देश की बड़ी आबादी को शिक्षा, रोजगार, खेती-किसानी, सिंचाई सुविधाएं, स्वास्थ्य और व्यापार के नए रास्ते खुलेंगे और उम्मीदें जगेंगीं। लेकिन इस रास्ते की चुनौतियां भी कम नहीं हैं। बड़ी चुनौती है इस क्रांति को केवल अंग्रेजी या हिंदी भाषा तक सीमित रह जाने से रोकना। देश में बोली जाने वाली प्रत्येक भाषा को इस क्रांति का लाभ मिलना चाहिए, यह प्रारंभ से ही देखना होगा। यदि किसी कारण इस मामले में चूक हो गई तो अनेक प्रकार की समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। दूसरी चुनौती है देश की बड़ी निरक्षर आबादी को इस लाइक बनाना कि वह डिजिटिलाइजेशन के महत्व को समझ सके और उसे अपना सके। भारत के ग्रामीण भारत में नई तकनीकि को अपनाने के प्रति जो उपेक्षाभाव है उसके कारण काफी कठिनाइयां आने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। सरकार को अपने स...