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Showing posts from January, 2015

पाइथागोरस बनाम बोधायन

पाइथागोरस बनाम बोधायन क्या दुनिया का पहला हवाई जहाज भारत में बना था?  क्या दुनिया को पाइथागोरस थ्योरम भी भारत ने दी थी? ये प्रश्न महत्वपूर्ण इसलिए हैं क्योंकि फिल्म ’हवाईजादा’ में दी गई जानकारी से भारतीय युवा रोमांचित महसूस कर रहा है। दूसरी ओर विज्ञान और प्राधोगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने पाइथागोरस थ्योरम को भारतीय बोधायन प्रमेय बताकर भारत सहित दुनिया के गणितज्ञों में नई बहस छेड़ दी है। हालांकि एनसीईआरटी की गणित की पुस्तकों में पाइथागोरस के साथ ही बोधायन का जिक्र बहुत पहले से शुरू हो चुका है। एक वर्ग है जो ऐसी बहसों को निरर्थक मानता है वहीं दूसरे वर्ग का मानना है कि इतिहास केवल तथ्यों का ज्ञान नहीं होता बल्कि वह वर्तमान के गौरव का कारण भी होता है। आज की पीढ़ी जब अपने गौरवशाली अतीत को जानेगी तभी उसे भविष्य के लिए संघर्ष की प्रेरणा प्राप्त होगी। ऐसे अनेक विषय हैं जैसे, यह माना जाता है कि दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी भारत में हुई। चिकित्सा विज्ञान में भारत की श्रेष्ठता के दावे भी कम नहीं हैं, कहा जाता है कि शल्य क्रिया के श्रेष्ठतम उपकरण भारत में उपलब्ध थे। दुनिया का सर्वश्रेष्ठ...

'गंदी बात' के विरोध में जावेद

"गंदी बात" के विरोध में जावेद वर्तमान दौर के फिल्मी गीतों में लगातार बढ़ रहे भद्देपन से देश के साहित्य जगत की चिंतायें अब गीतकार जावेद अख्तर के माध्यम से मुखर हुई हैं। उन्होंने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि समाज को भद्दे फिल्मी गीतों के विरुद्ध अपनी आवाज उठानी चाहिए। जावेद की इस पहल का स्वागत हर स्तर पर होना चाहिए। किसी भी गीत और साहित्य की रचना केवल मनोरंजन हेतु नहीं अपितु समाज को अनुशासित करने, उसे सभ्य और सुसंस्कारित बनाने के लिए होती है। इसीलिए साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है जो किसी भी इंसान को गहरे तक प्रभावित करने की अनूठी ताकत रखता है। सामान्य मनोरंजन के लिए लिखे गए गीत भी अपना गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। ’चोली के पीछे...’ से लेकर ’गंदी बात...’ और उसके आगे तक के फिल्मी गीतों ने समाज का मनोरंजन कम किया, अराजकता अधिक फैलाई। ऐसे गीतों के सामाजिक प्रभाव को देखें तो पाते हैं कि इसने ’गंदी बात’ की गंभीरता को समाप्त किया, जिसके परिणाम स्वरूप अनेक असामाजिक घटनाएं तब तक गंदी बात नहीं रह गईं जब तक उनको अंजाम देने वाले कानूनी शिकंजे में नहीं फंसे। युव...
महामारी बनता कैंसर सरकार और सामाजिक संगठनों का ध्यान आमतौर पर उन्हीं बीमारियों पर जाता है जो महामारी का रूप ले लेती हैं। लंबे संघर्ष के बाद देश ने पोलियो जैसी बीमारी पर अब काबू पा लिया है। टीबी पर काबू पाने के लिए लगातार कोशिशें जारी हैं। एड्स को लकर भी जैसा शोर कुछ वर्ष पहले तक था अब नहीं है। ब्लड प्रेशर और डायबिटीज को लेकर भी अब पहले से अधिक सतर्कता है। लेकिन कैंसर को जानलेवा तो मान लिया गया है पर अभी महामारी के नजरिये से नहीं देखा जा रहा है। जबकि यह जिस तेजी से अपने पांव पसार रहा है, वह निकट भविष्य के लिए गंभीर खतरों की ओर इशारा है। हालांकि अभी इसकी तेजी के कोई प्रमाणिक आंकडे़ मौजूद नहीं हैं। फिर भी अस्पतालों और आम समाज के बीच से जो खबरें लगातार आ रही हैं वे परेशान करने वाली हैं। हाल ही में ग्रेटर नोएडा के सादोपुर गांव से खबर आई है कि वहां का हर तीसरा घर कैंसर की चपेट में हैं और इस रोग की गिरफ्त में आकर गत पांच वर्षों में पचास लोग मौत के मुंह में समा चुके हैं। उसी प्रकार पंजाब से भी खबर आई थी कि वहां के कई गांवों के अधिकांश वाशिंदे केंसर की चपेट में हैं। ऐसी खबरें भी हालांकि यदा ...
गंगा पर चिंतित न्यायालय हम भारतवासियों के लिए ’गंगा’ शब्द का श्रवण या उच्चारण ऐसा भावनात्मक वायुमंडल पैदा करता है जैसे हम अपने मूलाधार से मिल रहे हों। गंगा को हमने नदी नहीं, मां माना है और गंगा जल को अमृत तुल्य। लेकिन काल के प्रवाह ने ऐसा उपभोक्तावाद हमारे मन-मस्तिष्क में स्थापित किया कि मां गंगा भयानक प्रदूषण से कराह उठी। तीस वर्ष पूर्व हमारा ध्यान गंगा को साफ करने की ओर गया तो हमने कुछ प्रयास प्रारंभ किये। लेकिन इन तीस वर्षों में जनता द्वारा मेहनत से कमाए गए लगभग दो हजार करोड़ रुपये तो सरकारी खाते से निकल गए लेकिन गंगा पहले से और अधिक गंदी ही नहीं हुई बल्कि कहीं-कहीं तो अपनी प्रासंगिकता भी खो बैठी। अब जब इस गंभीर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की खिंचाई की और पूछा कि क्या इसी सरकार के कार्यकाल में गंगा की सफाई हो पाएगी? इस प्रश्न के पीछे कोर्ट की भावना सरकार को समय सीमा में बांधना तो है ही साथ ही इसे चुनावी भावनात्मक मुद्दा बनने से रोकना भी है। सरकार ने संभावना व्यक्त की है कि 2018 तक वह गंगा की सफाई का कार्य पूरा कर लेगी। ऐसे मामलों में सरकारों के आश्वासन कोई ...
विवेकानंद का हिन्दुत्व और धर्मांतरण आगरा में चंद तथाकथित बंग्लादेशी मुस्लिमों ने काली माता की पूजा करके हवन किया तो उसकी लपटें देश विदेश की मीडिया में सुर्खियां बन गईं। बहस का जो दौर शुरू हुआ , उसमें हर नेता-अभिनेता हिन्दुत्व का विशेषज्ञ बन गया। ऐसे में याद आते हैं स्वामी विवेकानंद जिन्होंने हिन्दुत्व का केवल गहराई से अध्ययन ही नहीं किया बल्कि उसे अपने जीवन में भी उतारा। अतः हिन्दुत्व और धर्मांतरण पर स्वामी विवेकानंद के बिना कोई निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं है। शिकागो की धर्म सभा में स्वामी विवेकानंद ने विश्व को हिन्दुत्व की आधुनिक व्याख्या से परिचित कराते हुए कहा , ’’ संसार में सन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद करता हूं , धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूं और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की ओर से धन्यवाद देता हूं... मुझे एक ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है , जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीडित और शरणार्थियों को आश्रय दिया। हम लोग सब धर्मों के प्रति सहिष्णुता में केवल विश्वास ही नहीं रखते , वरन् सब धर्मों को...
बर्बर और निंदनीय इस्लाम का शाब्दिक अर्थ है ’शांति’। लेकिन इस धरती पर सर्वाधिक रक्तपात #ISLAM के नाम पर ही हुआ है। इस्लाम के स्वयंभू जिहादियों ने एक बाद फिर पैगंबर के अपमान का बदला लेने के लिए पेरिस में दस निहत्थे पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया। अभी पाकिस्तान में स्कूल के बच्चों का कत्लेआम धुधलाया भी न था कि पेरिस में घटना घट गई। इस बर्बर कृत्य की जितनी निंदा की जाए कम है। यह तथ्य भी अपनी जगह है कि लगातार मिल रही चेतावनियों के बावजूद अखबार ऐसे कार्टून छाप रहा था जिससे अल्लाह के बंदों की भावनाएं आहत हो रही थीं। निसंदेह अखबार की गलती थी और उसके किए को उचित नहीं ठहराया जा सकता लेकिन आज के इस दौर में बौद्धिक आक्रमण का जवाब गोलीबारी से देना भी कहीं से जायज नहीं ठहराया जा सकता। संचार प्रधान वर्तमान दौर में उस अखबार के कृत्यों के खिलाफ एक जनमत खड़ा किया जा सकता था। उसके पत्रकारों को असहिष्णु और दूसरे धर्मों का आदर न करने वाला घोषित किया जा सकता था। बातों और मुलाकातोें से भी बात बन सकती थी। बहुत रास्ते थे। लेकिन निहत्थे लोगों पर अचानक बंदूक की गोलियों की बौछार, नितांत कायराना हरकत है। मुस...