करनी का महत्व बता गए कलाम

भारतीय दर्शन ने इस संसार को नश्वर मानने के बावजूद कर्म की प्रधानता को सर्वोच्च स्थान दिया है। अतः संसार में मनुष्य के कर्म और विचार कितना महत्व रखते हैं इसके लिए 30 जुलाई 2015 को सदैव याद रहेगी। इस तारीख को दो विपरीत स्वभाव के लोगों ने दूसरी दुनिया का सफर जिस अंदाज में शुरू किया वह सदियों तक एक मिसाल की तरह पेश किया जाएगा। एक देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, जिन्होंने इस दुनिया से विदा ली तो पूरा देश रोया और दुनिया गमगीन हुई। सभी को लगा कि कोई अपना चला गया। कोई ऐसा जो उनका संरक्षक था। कोई ऐसा जो उन्हें सही और गलत का एहसास कराता था। कोई ऐसा जो भ्रम के बादलों को हटाकर सत्य और सफलता का मार्ग दिखाता था। उनके शब्द लोग रट रहे हैं, उनकी बातों को याद कर रहे हैं, उनके कहे का अनुसरण कर रहे है, उनके लिखे को पढ़ रहे हैं। जो उनसे प्रत्यक्ष मिले थे, वे अपने को सौभाग्यशाली बताते हुए आंसू बहा रहे हैं और जिन्होंने उन्हें केवल तस्वीरों और टीवी पर देखा था वे भी गमजदा हैं। उनकी सौम्यता, उनकी सज्जनता, उनका स्नेहपूर्ण व्यक्तित्व, मानवता के प्रति उनका वास्तविक प्रेम, संसार को सुंदर बनाने की उनकी जिजीविषा जैसे अनेक सद्गुणों ने उन्हें दुनिया के महानतम लोगों की श्रेणी में खड़ा कर दिया। लाखों माता-पिता चाहेंगे कि उनके बच्चे देश का राष्ट्रपति बनें न बनें पर अब्दुल कलाम जैसा जीवन अवश्य जियें। दूसरा याकूब मेमन, मुंबई धमाके करके मानवता के खिलाफ पैशाचिकता को भी शर्मसार करने वाला कुख्यात। भारतीय कानून ने जिसके भीतर सभी परीक्षण करके मानवता के अंश खोजे किंतु असफल होने के बाद उसे इस संसार से जाने के लिए इसलिए बाध्य किया, जिससे धरती पर मानवता का संरक्षण हो सके। समाज में सज्जनता बची रहे, प्रेम, करुणा और स्नेह जैसी भावनाएं बलवती हों। देश के निर्दोष नागरिकों के जीवन को कोई खतरा न हो। अतः संसार उसे सदैव ही हिंसा, नफरत और घृणा के प्रतीक के तौर पर ही याद करेगा। ऐसे में कबीर की वह वाणी बार-बार याद आती है-
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हंसे हम रोये।।
ऐसी करनी कर चलो, हम हंसें जग रोए।।

Comments

Neeraj Tyagi said…
Very thoughtful article !!!

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