लोहड़ी : जानिए "दूल्हा भट्टी वाला" ने किससे बचाया था ब्राह्मण कन्या "सुंदरी" को, तब शुरू हुआ यह त्योहार
सुन्दरी मुंदरी होय
तेरा कौन विचारा होय
दूल्हा भट्टी वाला होय
दूल्हे ने धी ब्याई होय
सेर शक्कर आई होय
कुड़ी दे बोझे पाई होय
कुड़ी दा लाल पटाका होय
चाचे चूरी कुट्टी होय
जिमींदाराँ लुट्टी होय
जिमींदार सदाय होय
गिन गिन पोले लाये होय
ये उस गीत की कुछ पंक्तियाँ हैं जो लोहड़ी के अवसर पर रात में अग्नि प्रज्वल्लित करने के बाद लोग उसके चारों और परिक्रमा करते हुए गाते हैं| बच्चे इस त्यौहार को सामूहिक रूप से मनाने के लिए जब घर घर जा कर चंदा मांगते हैं तब भी इसी गीत को गाते हैं | सदियों से इस अवसर पर गाया जाने वाला यह गीत स्वयं इसकी कहानी प्रमाणिकता से बताता है |
वास्तव में यह किस्सा उस मुग़ल काल का है जब हिन्दू मुस्लिमो के गुलाम हो चुके थे एवं मुस्लिम शासकों के अत्याचार से उनका जीवन तार – तार हो चुका था, न हिन्दुओं का जीवन सुरक्षित था न उनकी स्त्रियों की इज्जत्त ऐसे में प्रतिकार तो दूर की बात अपनी बहिन बेटियों की इज्जत बचा लेने में भी हिन्दू अपनी जीत समझते थे | लोहड़ी का त्यौहार भी इसी प्रकार का हिन्दू विजय दिवस है जिसे पंजाब के हिन्दू सदियों से मनाते आ रहे हैं।
लोहड़ी की वास्तविक कहानी इस प्रकार है–
पंजाब के लाहौर के पास शेखुपुरा एक क़स्बा है जो देश के विभाजन के बाद से पकिस्तान का हिस्सा बन गया है| अकबर के शासन काल में शेखुपुरा और उसके आस पास के इलाके में एक राजपूत हिन्दू वीर युवक जिसका नाम दूल्हा भट्टी वाला था, मुगलों के खिलाफ सक्रिय था| मुग़ल शासकों की नजर में वह एक डाकू था लेकिन हिन्दुओं के लिए वह एक बागी हिन्दू लड़ाका था जो सरकारी खजानों को लूटता था व गरीब सताये हुए हिन्दुओं की सहायता करता था|
जब बादशाह अकबर उसके छापामार हमलों से परेशान हो गया तो उसने दूल्हा भट्टी वाले को जिन्दा या मुर्दा पकड़ कर लाने की जिम्मेदारी अपने एक किलेदार आसिफ खान को सौंपी|आसिफ खान एक सैनिक टुकड़ी ले कर उस ओऱ गया जिधर दूल्हा भट्टी वाले के होने की संभावना थी और एक गाँव की मस्जिद में डेरा डाला| पूस का महीना था सर्दी बहुत अधिक थी आसिफ खान ने सैनिकों की छोटी छोटी टुकड़ियों को अलग अलग दिशा में दुल्हे को पकड़ने के लिए भेजा और स्वयं मस्जिद की छत पर लेट कर धूप सेकने लगा, इसी बीच कुछ हिन्दू लड़कियां मस्जिद के बाहर के कूएँ पर पानी भरने आयीं| इनमें एक लड़की विशेष रूप से सुन्दर थी जिसका नाम सुन्दरी था| सुन्दरी को देखते ही आसिफ खान के मन में उसे पाने की इच्छा जागी| आसिफ खान ने सुन्दरी को अपने पास बुलाया, पर सुन्दरी डर कर भाग गयी| आसिफ खान ने मौलवी से पूछा की यह लड़की कौन है? मौलवी द्वारा यह बताये जाने पर की लड़की पास के गावं के ब्राह्मण की लड़की है आसिफ खान ने लड़की के पिता को बुलाने के लिए कहा | ब्राह्मण को बुलाया गया और उसे कहा गया की वो अपनी लड़की सुन्दरी का निकाह आसिफ खान के साथ कर दे। पर ब्राहमण इसके लिए तैरार नहीं हुआ| ब्राह्मण को कई प्रकार के प्रलोभन दिए गए , इस पर भी जब वह तैयार नहीं हुआ तो उसे डराया धमकाया गया| ब्राह्मण समझ गया की वह बुरी तरह फंस गया है अतः उस समय अपनी जान बचाने के लिए उसने बहाना बनाया कि अभी पूस का महीना चल रहा है और हिन्दुओं में पूस के महीने में विवाह नहीं किया जाता, आसिफ खान ने ब्राह्मण को कुछ धन दिया और कहा की वो इससे लड़की के लिए कपड़े गहने आदि खरीदे|
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आसिफ खान को दूल्हा भट्टी वाला तो मिला नहीं अतः कुछ दिन बाद वापिस लौटने से पहले उसने सुंदरी के पिता ब्राह्मण से कहा की पूस का महीना समाप्त होने पर वह आयेगा और सुन्दरी से निकाह करेगा| आसिफ खान तो लौट गया| इधर परेशान ब्राह्मण ने सोचा की इस परिस्थिति में दूल्हा भट्टी वाला ही उसे बचा सकता है अतः वह दुल्हे भक्ति वाले को ढूँडने के लिए जंगल की और चला| दुल्हा भट्टी वाले से भेंट होने पर ब्राह्मण ने अपनी सारी परेशानी उसको कह सुनाई कि किस प्रकार मुस्लिम किलेदार आसिफ खान डरा धमका कर दबाव डाल कर जबरदस्ती उसकी बेटी से निकाह करने जा रहा है।
तब दुल्हा भट्टी वाला ने ब्राहमण को आश्वासन दिया कि वो चिंता न करे वह उसकी बेटी की रक्षा करेगा| दुल्हे ने एक ब्राहमण युवक को सुन्दरी से विवाह के लिए तैयार किया और पूस माह के आखिरी दिन गावं में आया और सुन्दरी को विवाह के लिए अपने साथ ले गया एवं पूस मास की अंतिम रात्रि को जब पूस मास समाप्त हो रहा था और माघ मास शुरू हो रहा था उसका विवाह उस ब्राहमण युवक के साथ करा दिया , कन्या दान दुल्हे ने स्वयं किया |
पूस मास समाप्त होने पर जब आसिफ खान सुन्दरी से निकाह करने के लिए आया तो उसे बताया गया की सुन्दरी का तो विवाह हो चुका है तो वह हाथ मलता रह गया व मन मसोस कर वापिस लौट गया |
इस प्रकार एक हिन्दू युवती को जबरदस्ती निकाह द्वारा इस्लामीकारण के कुचक्र से बचाया जा सका | हिन्दुओं ने इसे अपनी विजय के रूप में देखा और हर वर्ष इसे लोहड़ी त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा, यह परंपरा आज तक चली आ रही है |
लोहड़ी पर धर्म निरपेक्षता का रंग चढ़ाया गया-
आज भारत में एक फैशन चल निकला है जिसका नाम धर्म निरपेक्षता है| ऐसे बहुत से व्यक्ति और संस्थाए पैदा हो गई है जिन्हेंहि न्दू गौरव की घटनाओं में गर्व नहीं होता, हर बात में धर्म निरपेक्षता सोच पर हावी रहती है| लोहड़ी के त्यौहार में भी उन्होंने धर्म निरपेक्षता ढूँढने का प्रयास किया है |
पंजाबी सभा के लोहड़ी के त्यौहार के कई आयोजनों में मैंने वक्ताओं को लोहड़ी के त्यौहार के बारे में भ्रमित करने वाले अलग अलग कारण बताते हुए सुना है | जिनमें से कुछ निम्न हैं –
--- मौसम बदलता है इस लिए यह त्यौहार मनाया जाता है |
--- नई फसल आती है इसकी ख़ुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है |
--- एक पंजाबी लेखक ने तो लिखा है की दूल्हा वीर मुसलमान राजपूत था , उसका और अकबर के बेटे शेखू (सलीम) का युद्ध हुआ जिसमें दूल्हा वीरता से लड़ा पर अंत में मार दिया गया | साथ ही यह भी लिखा है की दुल्हे की वीरता के कारण बहुत सी लडकियां उस पर मरती थीं जिस में से सुन्दरी भी एक थी |
वास्तविकता यह है कि न तो मौसम में कोई नया बदलाव आता है और न ही पूरे देश के किसी भी भाग में कोई नई फसल आती है|
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-
प्रश्न उठता है कि (१) यह त्यौहार पंजाब में ही क्यों मनाया जाता है या जहाँ जहाँ पंजाबी हिन्दू जा कर बस गए हैं केवल वहीँ मनाया जाता है? इसका सीधा सा उत्तर है क्योंकि घटना पंजाब की है इसलिए| दूल्हा हिन्दू राजपूत था इसीलिए वह हिन्दुओं की सहायता करता था यदि मुसलमान होता तो मुसलमान उसकी वीरता के गीत गाते और त्यौहार मनाते|
(२) सदियों से इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत से साफ़ पता चलता है कि सुंदरी नाम की लड़की का विवाह हुआ |
(३) तेरा कौन विचारा –जवाब है दूल्हा भट्टी वाला अर्थात दूल्हा भट्टी वाले ने सुन्दरी की सहायता की |
(४) दुल्हे धी ब्याई अर्थात दुल्हे ने बेटी की शादी की |
(५) विवाह के अवसर पर मिठाई बांटी गई |
(६) कुड़ी दा लाल पटाका अर्थात लड़की ने लाल रंग के वस्त्र पहने , जैसा कि हिन्दू विवाह में परंपरा है |
(७) हिन्दू विवाह के समय हवन यज्ञ किया जाता है तथा अग्नि के चारों और परिक्रमा कर फेरे लिए जाते हैं इसीलिए लोहड़ी के अवसर पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है जो हवन यज्ञ का प्रतीक है तथा उसकी परिक्रमा की जाती है | तिल और गुड़ से बनी मिठाई बांटी जाती है |
(८) पूस मास में हिन्दू परंपरा के अनुसार विवाह नहीं किये जाते इसलिए पूस माह के अंतिम दिन जब पूस माह समाप्त हो कर माघ माह लग रहा था जिस दिन सुंदरी का विवाह हुआ उसी दिन यह त्यौहार मनाया जाता है |
(९) इसी लिए पंजाबियों में लड़की के विवाह के बाद उसकी पहली लोहड़ी का विशेष महत्व होता है तथा उस परिवार में लोहड़ी विशेष उत्साह से मनाई जाती है|
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विचार करें-
सारे प्रमाण पारंपरिक कहानी के पक्ष में हैं जिसे धर्मनिरपेक्षता वादी झुठलाने का प्रयास करते हैं तथा त्यौहार के मनाये जाने के अजीब अजीब से कारण बताने का प्रयास करते हैं , इसका परिणाम यह हुआ है कि त्यौहार अपने ऐतिहासिक महत्व को खोता जा रहा है व मात्र गाने बजाने, खाने पीने और मनोरंजन का अवसर बनता जा रहा है | दुःख तब होता है जब बहुत से पंजाबी युवक भी इस त्यौहार के अवसर पर लोहड़ी का गीत तो गाते हैं पर पूछे जाने पर त्यौहार मनाये जाने का वास्तविक कारण नहीं बता पाते |
मूल लेखक- डा. महेश चांदना
संपादन- Anant Vishwendra Singh
तेरा कौन विचारा होय
दूल्हा भट्टी वाला होय
दूल्हे ने धी ब्याई होय
सेर शक्कर आई होय
कुड़ी दे बोझे पाई होय
कुड़ी दा लाल पटाका होय
चाचे चूरी कुट्टी होय
जिमींदाराँ लुट्टी होय
जिमींदार सदाय होय
गिन गिन पोले लाये होय
ये उस गीत की कुछ पंक्तियाँ हैं जो लोहड़ी के अवसर पर रात में अग्नि प्रज्वल्लित करने के बाद लोग उसके चारों और परिक्रमा करते हुए गाते हैं| बच्चे इस त्यौहार को सामूहिक रूप से मनाने के लिए जब घर घर जा कर चंदा मांगते हैं तब भी इसी गीत को गाते हैं | सदियों से इस अवसर पर गाया जाने वाला यह गीत स्वयं इसकी कहानी प्रमाणिकता से बताता है |
वास्तव में यह किस्सा उस मुग़ल काल का है जब हिन्दू मुस्लिमो के गुलाम हो चुके थे एवं मुस्लिम शासकों के अत्याचार से उनका जीवन तार – तार हो चुका था, न हिन्दुओं का जीवन सुरक्षित था न उनकी स्त्रियों की इज्जत्त ऐसे में प्रतिकार तो दूर की बात अपनी बहिन बेटियों की इज्जत बचा लेने में भी हिन्दू अपनी जीत समझते थे | लोहड़ी का त्यौहार भी इसी प्रकार का हिन्दू विजय दिवस है जिसे पंजाब के हिन्दू सदियों से मनाते आ रहे हैं।
लोहड़ी की वास्तविक कहानी इस प्रकार है–
पंजाब के लाहौर के पास शेखुपुरा एक क़स्बा है जो देश के विभाजन के बाद से पकिस्तान का हिस्सा बन गया है| अकबर के शासन काल में शेखुपुरा और उसके आस पास के इलाके में एक राजपूत हिन्दू वीर युवक जिसका नाम दूल्हा भट्टी वाला था, मुगलों के खिलाफ सक्रिय था| मुग़ल शासकों की नजर में वह एक डाकू था लेकिन हिन्दुओं के लिए वह एक बागी हिन्दू लड़ाका था जो सरकारी खजानों को लूटता था व गरीब सताये हुए हिन्दुओं की सहायता करता था|
जब बादशाह अकबर उसके छापामार हमलों से परेशान हो गया तो उसने दूल्हा भट्टी वाले को जिन्दा या मुर्दा पकड़ कर लाने की जिम्मेदारी अपने एक किलेदार आसिफ खान को सौंपी|आसिफ खान एक सैनिक टुकड़ी ले कर उस ओऱ गया जिधर दूल्हा भट्टी वाले के होने की संभावना थी और एक गाँव की मस्जिद में डेरा डाला| पूस का महीना था सर्दी बहुत अधिक थी आसिफ खान ने सैनिकों की छोटी छोटी टुकड़ियों को अलग अलग दिशा में दुल्हे को पकड़ने के लिए भेजा और स्वयं मस्जिद की छत पर लेट कर धूप सेकने लगा, इसी बीच कुछ हिन्दू लड़कियां मस्जिद के बाहर के कूएँ पर पानी भरने आयीं| इनमें एक लड़की विशेष रूप से सुन्दर थी जिसका नाम सुन्दरी था| सुन्दरी को देखते ही आसिफ खान के मन में उसे पाने की इच्छा जागी| आसिफ खान ने सुन्दरी को अपने पास बुलाया, पर सुन्दरी डर कर भाग गयी| आसिफ खान ने मौलवी से पूछा की यह लड़की कौन है? मौलवी द्वारा यह बताये जाने पर की लड़की पास के गावं के ब्राह्मण की लड़की है आसिफ खान ने लड़की के पिता को बुलाने के लिए कहा | ब्राह्मण को बुलाया गया और उसे कहा गया की वो अपनी लड़की सुन्दरी का निकाह आसिफ खान के साथ कर दे। पर ब्राहमण इसके लिए तैरार नहीं हुआ| ब्राह्मण को कई प्रकार के प्रलोभन दिए गए , इस पर भी जब वह तैयार नहीं हुआ तो उसे डराया धमकाया गया| ब्राह्मण समझ गया की वह बुरी तरह फंस गया है अतः उस समय अपनी जान बचाने के लिए उसने बहाना बनाया कि अभी पूस का महीना चल रहा है और हिन्दुओं में पूस के महीने में विवाह नहीं किया जाता, आसिफ खान ने ब्राह्मण को कुछ धन दिया और कहा की वो इससे लड़की के लिए कपड़े गहने आदि खरीदे|
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आसिफ खान को दूल्हा भट्टी वाला तो मिला नहीं अतः कुछ दिन बाद वापिस लौटने से पहले उसने सुंदरी के पिता ब्राह्मण से कहा की पूस का महीना समाप्त होने पर वह आयेगा और सुन्दरी से निकाह करेगा| आसिफ खान तो लौट गया| इधर परेशान ब्राह्मण ने सोचा की इस परिस्थिति में दूल्हा भट्टी वाला ही उसे बचा सकता है अतः वह दुल्हे भक्ति वाले को ढूँडने के लिए जंगल की और चला| दुल्हा भट्टी वाले से भेंट होने पर ब्राह्मण ने अपनी सारी परेशानी उसको कह सुनाई कि किस प्रकार मुस्लिम किलेदार आसिफ खान डरा धमका कर दबाव डाल कर जबरदस्ती उसकी बेटी से निकाह करने जा रहा है।
तब दुल्हा भट्टी वाला ने ब्राहमण को आश्वासन दिया कि वो चिंता न करे वह उसकी बेटी की रक्षा करेगा| दुल्हे ने एक ब्राहमण युवक को सुन्दरी से विवाह के लिए तैयार किया और पूस माह के आखिरी दिन गावं में आया और सुन्दरी को विवाह के लिए अपने साथ ले गया एवं पूस मास की अंतिम रात्रि को जब पूस मास समाप्त हो रहा था और माघ मास शुरू हो रहा था उसका विवाह उस ब्राहमण युवक के साथ करा दिया , कन्या दान दुल्हे ने स्वयं किया |
पूस मास समाप्त होने पर जब आसिफ खान सुन्दरी से निकाह करने के लिए आया तो उसे बताया गया की सुन्दरी का तो विवाह हो चुका है तो वह हाथ मलता रह गया व मन मसोस कर वापिस लौट गया |
इस प्रकार एक हिन्दू युवती को जबरदस्ती निकाह द्वारा इस्लामीकारण के कुचक्र से बचाया जा सका | हिन्दुओं ने इसे अपनी विजय के रूप में देखा और हर वर्ष इसे लोहड़ी त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा, यह परंपरा आज तक चली आ रही है |
लोहड़ी पर धर्म निरपेक्षता का रंग चढ़ाया गया-
आज भारत में एक फैशन चल निकला है जिसका नाम धर्म निरपेक्षता है| ऐसे बहुत से व्यक्ति और संस्थाए पैदा हो गई है जिन्हेंहि न्दू गौरव की घटनाओं में गर्व नहीं होता, हर बात में धर्म निरपेक्षता सोच पर हावी रहती है| लोहड़ी के त्यौहार में भी उन्होंने धर्म निरपेक्षता ढूँढने का प्रयास किया है |
पंजाबी सभा के लोहड़ी के त्यौहार के कई आयोजनों में मैंने वक्ताओं को लोहड़ी के त्यौहार के बारे में भ्रमित करने वाले अलग अलग कारण बताते हुए सुना है | जिनमें से कुछ निम्न हैं –
--- मौसम बदलता है इस लिए यह त्यौहार मनाया जाता है |
--- नई फसल आती है इसकी ख़ुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है |
--- एक पंजाबी लेखक ने तो लिखा है की दूल्हा वीर मुसलमान राजपूत था , उसका और अकबर के बेटे शेखू (सलीम) का युद्ध हुआ जिसमें दूल्हा वीरता से लड़ा पर अंत में मार दिया गया | साथ ही यह भी लिखा है की दुल्हे की वीरता के कारण बहुत सी लडकियां उस पर मरती थीं जिस में से सुन्दरी भी एक थी |
वास्तविकता यह है कि न तो मौसम में कोई नया बदलाव आता है और न ही पूरे देश के किसी भी भाग में कोई नई फसल आती है|
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-
प्रश्न उठता है कि (१) यह त्यौहार पंजाब में ही क्यों मनाया जाता है या जहाँ जहाँ पंजाबी हिन्दू जा कर बस गए हैं केवल वहीँ मनाया जाता है? इसका सीधा सा उत्तर है क्योंकि घटना पंजाब की है इसलिए| दूल्हा हिन्दू राजपूत था इसीलिए वह हिन्दुओं की सहायता करता था यदि मुसलमान होता तो मुसलमान उसकी वीरता के गीत गाते और त्यौहार मनाते|
(२) सदियों से इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत से साफ़ पता चलता है कि सुंदरी नाम की लड़की का विवाह हुआ |
(३) तेरा कौन विचारा –जवाब है दूल्हा भट्टी वाला अर्थात दूल्हा भट्टी वाले ने सुन्दरी की सहायता की |
(४) दुल्हे धी ब्याई अर्थात दुल्हे ने बेटी की शादी की |
(५) विवाह के अवसर पर मिठाई बांटी गई |
(६) कुड़ी दा लाल पटाका अर्थात लड़की ने लाल रंग के वस्त्र पहने , जैसा कि हिन्दू विवाह में परंपरा है |
(७) हिन्दू विवाह के समय हवन यज्ञ किया जाता है तथा अग्नि के चारों और परिक्रमा कर फेरे लिए जाते हैं इसीलिए लोहड़ी के अवसर पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है जो हवन यज्ञ का प्रतीक है तथा उसकी परिक्रमा की जाती है | तिल और गुड़ से बनी मिठाई बांटी जाती है |
(८) पूस मास में हिन्दू परंपरा के अनुसार विवाह नहीं किये जाते इसलिए पूस माह के अंतिम दिन जब पूस माह समाप्त हो कर माघ माह लग रहा था जिस दिन सुंदरी का विवाह हुआ उसी दिन यह त्यौहार मनाया जाता है |
(९) इसी लिए पंजाबियों में लड़की के विवाह के बाद उसकी पहली लोहड़ी का विशेष महत्व होता है तथा उस परिवार में लोहड़ी विशेष उत्साह से मनाई जाती है|
Read-
विचार करें-
सारे प्रमाण पारंपरिक कहानी के पक्ष में हैं जिसे धर्मनिरपेक्षता वादी झुठलाने का प्रयास करते हैं तथा त्यौहार के मनाये जाने के अजीब अजीब से कारण बताने का प्रयास करते हैं , इसका परिणाम यह हुआ है कि त्यौहार अपने ऐतिहासिक महत्व को खोता जा रहा है व मात्र गाने बजाने, खाने पीने और मनोरंजन का अवसर बनता जा रहा है | दुःख तब होता है जब बहुत से पंजाबी युवक भी इस त्यौहार के अवसर पर लोहड़ी का गीत तो गाते हैं पर पूछे जाने पर त्यौहार मनाये जाने का वास्तविक कारण नहीं बता पाते |
मूल लेखक- डा. महेश चांदना
संपादन- Anant Vishwendra Singh
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