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Showing posts from 2017

शिक्षक के लिए आवश्यक ”नैतिकता”

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भारत के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक प्रवाह में गुरु को विशेष स्थान और महत्व प्रदान किया गया है। भारत में गुरु वह है जो अपने शिष्य के जीवन पथ को ज्ञान और विवेक से प्रकाशित करते हुए उसके व्यक्तित्व को इस प्रकार गढ़े कि शिष्य पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों का सफलता पूर्णक निर्वहन कर सके। शिक्षक के उत्तरदायित्व समय सीमा या स्थान से बंधे नहीं हैं। शिष्य के कल्याण के लिए वह अपने हितों का कहीं भी और कभी भी निस्वार्थ भाव से बलिदान करने को तत्पर रहता है। आज के भौतिकतावादी युग में किसी का वास्तविक अर्थों मंे गुरु होना सरल नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं। अतः आशा करनी चाहिए कि हम गुरु बनने का प्रयास करते हुए कम से कम एक अनुकरणीय शिक्षक बन सकें। इसके लिए शिक्षक के जीवन में वैचारिक और व्यवहारिक दोनों स्तरों पर नैतिकता का विशेष महत्व है। यह नैतिक मूल्यों की दर्दनाक नीलामी का दौर है। संयम, शांति, सद्भावना, सहचर्य, सहयोग, सहिष्णुता, त्याग, तपस्या और बलिदान जैसे शब्द अपने अर्थ खो रहे हैं। पाश्चात्य विद्वान मैक्स मूलर कहता है कि भारत के क्या कहने, वहां की तो पनिहारिन भी संसार की न...

चीन पर निर्भरता से कैसे मुक्त हो भारत?

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सीमा पर चीन के साथ गंभीर तना-तनी के माहौल में देश के आम नागरिक को यह पता होना चाहिए कि भारत किस प्रकार चीन पर निर्भर होता चला जा रहा है। एक ओर चीन से आयातित सस्ती और घटिया रोजमर्रा की चीजों से हमारे बाजार भरे पड़े हैं, तो दूसरी ओर भारतीय उद्योगों के कौशल और उसको दिए जाने वाले सरकारी और सामाजिक प्रोत्साहन पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं। प्रश्न यह है कि भारत में भारतीयों द्वारा सस्ते माल का उत्पादन क्यों नहीं किया जा सकता? इसमें कहां परेशानी आती है? उन परेशानियों पर विभिन्न उद्योग संगठन सरकार से बात करके समाधान क्यों नहीं निकालते? आश्चर्यजनक रूप से आज हम बिजली के उपकरण, इलैक्ट्रानिक्स उपकरण, गाड़ियों के टायर, सरकारी परियोजनाओं के लिए उपयोगी वस्तुओं के साथ ही अधिकांश औधोगिक वस्तुओं, कम्प्यूटर हार्डवेयर, मोबाईल फोन सहित भारतीय त्योहारों पर उपयोग में आने वाले सामान, बच्चों के खेलने के खिलौनों सहित आम उपभोक्ता वस्तुओं तक के लिए चीन के आयात पर निर्भर हैं। हमारा कृषि क्षेत्र किस कदर चीन से आयातित उपकरणों पर निर्भर हो गया है इसकी तो हमें कल्पना भी नहीं है। एक आंकड़े के अनुसार 1996-97 के बाद गत...

“फूलपुर” में भाजपा और संयुक्त विपक्ष की अग्नि परीक्षा

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-बसपा सुप्रिमो कल कर सकतीं हैं अपने अगले कदम का ऐलान -पटेल वोट के साथ ओबीसी, एससी के साथ से भाजपा निश्चिंत लखनऊ। बसपा सुप्रिमो मायावती का राज्यसभा से इस्तीफा स्वीकृत होने के बाद जिस तेजी से फूलपुर लोकसभा सीट से उनको संयुक्त विपक्ष का साझा उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चाएं राजनीति गलियारों में तेजी से चल रही हैं, उन पर भाजपा के रणनीतिकार पैनी नजर लगाए हुए हैं। आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटें खाली होंगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर लोकसभा छोड़ेंगे तो उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य फूलपुर लोकसभा। गोरखपुर पर संयुक्त विपक्ष की दाल गलने वाली नहीं है और फूलपुर क्योंकि देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू से जुड़ी सीट रही है इसलिए विपक्षी दल वहां बसपा सुप्रिमो मायावती को साझा प्रत्याशी बनाकर अपनी ताकत आजमाने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन आज के राजनीतिक माहौल में भाजपा के लिए फूलपुर लोकसभा को दोबारा जीतना उसकी प्रतिष्ठा का विषय है। उप मुख्यमंत्री मौर्य ने इस सीट को पहली बार भाजपा की झोली में डाला था। माना जा रहा है कि मायावती यदि संयुक्त विपक्ष अर्थात सपा, बसपा और कांग्र...