चीन पर निर्भरता से कैसे मुक्त हो भारत?

सीमा पर चीन के साथ गंभीर तना-तनी के माहौल में देश के आम नागरिक को यह पता होना चाहिए कि भारत किस प्रकार चीन पर निर्भर होता चला जा रहा है। एक ओर चीन से आयातित सस्ती और घटिया रोजमर्रा की चीजों से हमारे बाजार भरे पड़े हैं, तो दूसरी ओर भारतीय उद्योगों के कौशल और उसको दिए जाने वाले सरकारी और सामाजिक प्रोत्साहन पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं। प्रश्न यह है कि भारत में भारतीयों द्वारा सस्ते माल का उत्पादन क्यों नहीं किया जा सकता? इसमें कहां परेशानी आती है? उन परेशानियों पर विभिन्न उद्योग संगठन सरकार से बात करके समाधान क्यों नहीं निकालते? आश्चर्यजनक रूप से आज हम बिजली के उपकरण, इलैक्ट्रानिक्स उपकरण, गाड़ियों के टायर, सरकारी परियोजनाओं के लिए उपयोगी वस्तुओं के साथ ही अधिकांश औधोगिक वस्तुओं, कम्प्यूटर हार्डवेयर, मोबाईल फोन सहित भारतीय त्योहारों पर उपयोग में आने वाले सामान, बच्चों के खेलने के खिलौनों सहित आम उपभोक्ता वस्तुओं तक के लिए चीन के आयात पर निर्भर हैं। हमारा कृषि क्षेत्र किस कदर चीन से आयातित उपकरणों पर निर्भर हो गया है इसकी तो हमें कल्पना भी नहीं है। एक आंकड़े के अनुसार 1996-97 के बाद गत 19 वर्षों में चीन से होने वाले आयात में करीब 78 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह आयात भारतीय धरेलू विनिर्माण का 22 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। प्रश्न यह है कि 20 वर्ष से कम उम्र की 41 प्रतिशत हमारी युवा आबादी इस दौरान क्या कर रही थी? और साथ ही यह भी कि 2020 तक 64 प्रतिशत युवा आबादी वाले भारत की दिशा और दशा औद्योगिक उत्पादन के लिहाज से क्या होगी? अभी 2017 आधा बीत गया है। केवल ढाई-तीन वर्ष में ऐसा कौन सा चमत्कार होने वाला है जिससे चीन हमारे घरेलू विनिर्माण क्षेत्र का लोहा मान लेगा और हमारी निर्भरता उस पर कम होती जाएगी? इन प्रश्नों के उत्तर हमारे पास फिलहाल मौजूद नहीं हैं। तब तो बिल्कुल भी नहीं जब वर्तमान केंद्र सरकार की नीतियों के चलते स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन दावा कर रहे हैं कि हमारे ”स्टार्ट अप“ का भी वित्त पोषण विभिन्न चीनी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है और उनका स्वामित्व भी चीनी हाथों में जा रहा है। यह गंभीर स्थिति है।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. भगवती प्रसाद शर्मा ने अपने एक लेख में उद्घाटित किया कि गैर पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत के नाम पर चीन से भारत आने वाले सौर पैनल्स पर एंटी डंपिंग ड्यूटी नहीं लगने से घरेलू सौर उपकरण उद्योगों को भारी संकटों का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी ओर इससे जुड़े चीनी उद्यम फल-फूल रहे हैं। जबकि अमेरिका सहित यूरोप आदि में घरेलू उद्योगों के संरक्षण हेतु चीनी सौर पैनल आदि पर 238 प्रतिशत तक की भी एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाई है। यह इतना गभीर मसला है कि आने वाले दिनों में केवल सौर पैनल्स के आयात में ही देश से करीब 42 अरब डालर अर्थात 2.77 लाख करोड़ रुपये की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा व्यय होगी। जबकि इस धन के प्रोत्साहन से घरेलू उद्योग कई गुना अधिक उत्पादन करने में सक्षम हैं। आज भारत अपनी आवश्यकता के 88 प्रतिशत सौर उर्जा माड्यूल्स के लिए चीन से आयात पर निर्भर है। हमारे घरों को रौशन करने वाले एलईडी बल्बस की बात करें तो इस समय करीब 45 बड़ी-छोटी स्वदेशी कंपनियां ये बल्ब बनाती हैं, इसके बावजूद पिछले वर्ष ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के समूह ने दो करोड़ एलईडी बल्ब चीन से खरीद कर सरकार को आपूर्ति का आदेश फिलिप्स कंपनी को दिया। यह किस मजबूरी में किया गया यह किसी को पता नहीं है। पर्सनल कम्प्यूटर के क्षेत्र में हम पूरी तरह विदेशों पर निर्भर हो गए हैं, इस कारण देश में सर्वाधिक बिकने वाला पीसी अब लीनोवो हो गया है। देश में 2009 में 82 लाख टन रबर का उत्पादन होता था जो अब घट कर मात्र 50 लाख टन रह गया है। इसके परिणाम स्वरूप 2013-14 में चीन से आयातित केवल 40 हजार प्रतिमाह रेडियल टायर की संख्या अब 1.5 लाख प्रतिमाह को पार कर गई है। रबर का उत्पादन देश में हो या रबर का आयात करके टायर उत्पादन के घरेलू उद्योगों को बढ़ाने के लिए सरकार फिलहाल कोई प्रयास करती नजर नहीं आती। ध्यान देने वाली बात यह है कि इन्हीं टायरों का एक हिस्सा भारतीय सेना की गाड़ियों में भी उपयोग में लाया जाता है। जिस मोबाइल फोन के कारण संचार क्रांति पर हम फूले नहीं समा रहे हैं उस क्षेत्र में भी चीन हमें पछाड़ने में लगा है। पिछले 2 वर्ष पूर्व स्मार्ट फोन के बाजार पर चीन का कब्जा मात्र 15 प्रतिशत था, वह एक वर्ष पूर्व 21 प्रतिशत हुआ और आज 50 प्रतिशत हो गया। यानी देश के अधिकांश युवाओं के हाथ में आज चीनी स्मार्ट फोन हैं जिन पर सक्रीय विदेशी सर्वर पर चलने वाली सोशल साइट्स पर वे चीन के विरोध में स्लोगन वाईरल करने में अपना योगदान दे रहे हैं। पैरासीटामोल जैसी सामान्य दवाओं के क्षेत्र में चीन पर निर्भरता के विषय में मैंने गत 14 जुलाई को इसी काॅलम में लिखा था।
चीन पर हमारी निर्भरता की यह बानगी परेशान करने वाली है। जनता का एक छोटा वर्ग चीनी वस्तुओं के वहिष्कार के आंदोलन चलाता रहे और केंद्र सहित राज्य सरकारें चीन की कंपनियों के साथ निवेष समझौते करती रहें तो इससे हम आर्थिक मोर्चे पर चीन को नहीं पछाड़ सकते। हमें ध्यान रखना होगा कि चीनी कंपनियां भारत में आकर अपनी उत्पादन यूनिटों को खोलने के लिए निवेश करें या वे सीधे भारतीय कंपनियों में निवेश करें, ऐसे सभी कदम चीन पर निर्भरता बढ़ाने वाले ही सिद्ध होंगे जो भारतीय सुरक्षा, व्यापार और उद्योगों के सामने गंभीर संकट उत्पन्न कर देंगे। यह हमें देखना है कि जीवन के हर क्षेत्र में चीन पर लगातार बढ़ती निर्भरता को हम कैसे और तेजी से दूर कर सकते हैं। देश की युवा आबादी निश्चित ही इसमें महत्वपूर्ण योगदान कर सकती है, बशर्ते उसे उचित सहयोग और सही मार्गदर्शन मिले। यह कैसे संभव होगा, सरकार और समाज दोनों मिल कर तय करें। किसी भी कीमत पर समाधान तो निकालना ही होगा।

- Anant Vishwendra Singh

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