“फूलपुर” में भाजपा और संयुक्त विपक्ष की अग्नि परीक्षा
-बसपा सुप्रिमो कल कर सकतीं हैं अपने अगले कदम का ऐलान
-पटेल वोट के साथ ओबीसी, एससी के साथ से भाजपा निश्चिंत
लखनऊ। बसपा सुप्रिमो मायावती का राज्यसभा से इस्तीफा स्वीकृत होने के बाद जिस तेजी से फूलपुर लोकसभा सीट से उनको संयुक्त विपक्ष का साझा उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चाएं राजनीति गलियारों में तेजी से चल रही हैं, उन पर भाजपा के रणनीतिकार पैनी नजर लगाए हुए हैं। आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटें खाली होंगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर लोकसभा छोड़ेंगे तो उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य फूलपुर लोकसभा। गोरखपुर पर संयुक्त विपक्ष की दाल गलने वाली नहीं है और फूलपुर क्योंकि देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू से जुड़ी सीट रही है इसलिए विपक्षी दल वहां बसपा सुप्रिमो मायावती को साझा प्रत्याशी बनाकर अपनी ताकत आजमाने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन आज के राजनीतिक माहौल में भाजपा के लिए फूलपुर लोकसभा को दोबारा जीतना उसकी प्रतिष्ठा का विषय है। उप मुख्यमंत्री मौर्य ने इस सीट को पहली बार भाजपा की झोली में डाला था।
माना जा रहा है कि मायावती यदि संयुक्त विपक्ष अर्थात सपा, बसपा और कांग्रेस की साझा उम्मीदवार बनती हैं तो वहां भाजपा को पटकनी देना आसान होगा, क्योंकि कांग्रेस के परंपरागत वोट के साथ बसपा का दलित और सपा का मुस्लिम वोट वहां बड़ी ताकत बनता है। इस प्रयोग के द्वारा 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए विपक्षी दल अपने साझा दमखम को भी परख सकेंगे। दूसरी ओर भाजपा का मानना है कि अब फूलपुर में बहुत पानी बह चुका है। 2014 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार केशव प्रसाद मौर्य को यहां 52 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। जबकि यहां का बहुसंख्यक पटेल वोट तीन जगह पर विभाजित हुआ था। इस समय पटेल वोट पूरी तरह भाजपा के पक्ष में खड़ा नजर आ रहा है। इसके साथ ही पिछड़ा और दलित वोट भी काफी मात्रा में इस समय भाजपा की ओर आकर्षित है। ऐसे में विपक्ष के साझा उम्मीदवार की दाल भी यहां आसानी गलने वाली नहीं है। इसके बावजूद यदि ये सीट विपक्षी दलों को एक साथ आने का बहाना बनती है तो भाजपा के लिए परेशानी बढ़ाने वाली साबित हो सकती है।
दूसरी ओर मायावती ने 23 जुलाई (कल) को अपने कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई है। इस बैठक में उनकी पार्टी के सभी प्रमुख पदाधिकारी और जनप्रतिनिधि शामिल होंगे। माना जा रहा है कि इस महत्वपूर्ण बैठक में वे अपने खिसकते जनाधार पर चर्चा करने के साथ ही, यहीं पर अपने अगले कदम की घोषणा कर सकतीं हैं। एक ओर आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने उन्हें अपनी पार्टी के कोटे से राज्यसभा में भेजने का प्रस्ताव रखा है वहीं फूलपुर संसदीय क्षेत्र से उन्हें विपक्षी गठबंधन का साझा उम्मीदवार बनाने की चर्चा भी तेज है। फिलहाल इन दोनों में से मायावती को एक रास्ता चुनना है।
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