स्कूलों और विश्वविद्यालयों में तिरंगा
पिछले दिनों मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को अपने परिसरों में प्रतिदिन 207 फीट ऊंचा तिरंगा झंडा फहराने का आदेश दिया है। इस आदेश के दो दिन बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने भी बेसिक स्कूलों में माह की प्रत्येक पंद्रह तारीख को तिरंगा फहराकर राष्ट्रप्रेम दिवस मनाने का आदेश पारित किया है, जिससे बचपन से ही राष्ट्रप्रेम की भावना विकसित हो सके। इन निर्णयों का निश्चित ही स्वागत किया जाना चाहिए। विश्वविद्यालय जैसे परिसरों में जहां विद्यार्थियों का नियमित आना-जाना रहता है वहां पर राष्ट्रभक्ति की भावना के प्रसार का यह अत्यंत श्रेष्ठ तरीका माना जा सकता है। आज जहां कुछ विश्वविधालयों के परिसरों से उठे देशविरोधी नारेबाजी और अराजक गतिविधियों से प्रेरित कर्कश स्वरों ने पूरे देश का वातावरण दूषित किया है वहां ऐसे प्रयोगों से निश्चित ही लाभ मिलेगा। हालांकि यह अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था, संस्कार, नैतिकता और महापुरुषों की जीवनियां हमारे विद्यार्थियों में राष्ट्रभक्ति की भावना को सुनिश्चित करने में कहीं न कहीं असफल ही रहे हैं। विभिन्न भाषाओं में होने वाले साहित्य के श्रजन भी इस उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रहे हैं जबकि साहित्यकारों के बड़े सम्मेलन और कहीं न कहीं प्रतिदिन होने वाली साहित्य गोष्ठियों की भी कोई कमी नहीं है। इन सबके बावजूद भारत और भारतीयता का विरोध करना, भारतीय मान्यताओं और परंपराओं का खंडन करना, भारतीयता से जुड़े हर विचार-व्यवहार का मजाक उड़ाना एक फैशन सा बन गया है। आधुनिकता के नाम पर वैचारिक प्रदूषण फैलाने की जो मुहिम देश के लगभग सभी प्रमुख शिक्षण संस्थानों में जिस तरह चलाई जा रही है उसी का परिणाम है कि आज कई तथाकथित आधुुनिकता के पैरोकार देश विरोधी गतिविधियो के समर्थन में खड़े दिखाई दे रहे हैं। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इस देश में देशभक्ति की परिभाषा तक पर मतभेद है। यह वास्तव में विकृति है। आखिर जब देशभक्ति क्या है इस पर ही हम एक राय नहीं है तो देशद्रोह पर कैसे एकमत हो सकते हैं। यह वैचारिक विभ्रम की पराकाष्ठा है। विद्यार्थियों को इस विभ्रम से बचाने और उनमें देशभक्ति की भावना जाग्रत करने हेतु प्रतिदिन तिरंगा फहराने के नियमों का कड़ाई से पालन होना ही चाहिए।
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