मुस्लिम मतदाता के मौन से ममता बेचैन | byअनंत विश्वेंद्र सिंह
नए समीकरण में 06-04-2021 को प्रकाशित
मुस्लिम मतदाता के मौन से ममता बेचैन
अनंत विश्वेंद्र सिंह
पश्चिम बंगाल के 23 जिलों में 294 विधानसभा सीटों के लिए आठ चरणों में चुनाव हो रहे हैं। पहला चरण 27 मार्च को शुरू हुआ, आखिरी 29 अप्रैल को संपन्न होगा, परिणाम 2 मई को आयेगा। इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए दिन-रात एक किए हैं, वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य में 18 सीटों पर जीत दर्ज करके नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी बहुत ही आक्रामक तेवरों के साथ राज्य मैं पहली बार अपनी सरकार बनाने के लिए कसरत कर रही है। तीसरे मोर्चे में कांग्रेस और सीपीआईएम जैसे प्रमुख दल आपस में सीटों के बंटवारे के साथ मैदान में हैं साथ ही अब्बास सिद्दिकी की पार्टी इडियन सेकलर फ्रंट ने मुस्लिम मतों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करके ममता दीदी की सांसे फुला दी हैं। कुल मिलाकर यह चुनाव राजनीतिक लोगों के लिए कि नहीं बल्कि देश के आम जनता के लिए बहुत ही रोचक बन गया है।
देश के स्वतंत्रता आंदोलन की बात हो, संस्कृति या जीवन मूल्यों की, धार्मिक या सामाजिक आचरण की, पश्चिम बंगाल हमेशा ही राष्ट्रवादी विचारधारा के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वर्तमान कार्यकाल में जितना हिंदू विरोध देखने को मिला उतना तो नास्तिक कम्युनिस्ट शासन के बर्चस्व वाले दौर में भी नहीं था। उन्होंने मुहर्रम के ताजियों को निकालने के लिए दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगाने से लेकर कभी मस्जिदों में जाकर नमाज पढ़ी तो कभी मजारों पर चादर चढ़ाते हुए फोटो खिचाकर उन्हें प्रचारित कराया तो कभी इमामों के वेतन को बढ़ाया। पश्चिम बंगाल के मतदाता ने प्रदेश में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राजनीति का ऐसा विद्रूप चेहरा देखकर ही 2019 के आम चुनाव में बीजेपी के 18 सांसदों को जिताकर भविष्य के संकेत दे दिए थे। तब ममता को इस तथ्य ने और परेशान किया था कि आठ मुस्लिम बाहुल्य वाली लोकसभा सीटों पर भी भाजपा की जीत कैसे हुई। इसके बाद उन्होंने खुलकर कहना शुरू किया कि हां, मैं मुस्लिम तुष्टिकरण करती हूं और ऐसा सौ बार करूंगी क्योंकि जो गाय दूध देती है उसकी लात खाने में कोई नुकसान नहीं। सोशल मीडिया के इस दौर में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का वह वीडियो चिंतित करने वाला था जिसमें वे जनता के बीच से आने वाले ‘जय श्रीराम’ के उद्घोष के विरोध में सड़क पर बिफरती हुई नजर्र आइं। ममता का ऐसा आचरण और बयान, इस चुनाव में भाजपा के लिए वरदान साबित हो रहे हैं। प्रदेश के अधिकांश हिंदू मतदाता सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर भाजपा के साथ लामबंद होते नजर आ रहे हैैं। दूसरी ओर सभी कोशिशों के बावजूद मुस्लिम मतदाताओं को ममता अपने पक्ष में लामबंद नहीं कर पा रही हैं।
ममता के मुस्लिम प्रेम को समझने के लिए पश्चिम बंगाल के जनसांख्यकीय स्वरूप को समझना होगा। पिछले कई दशकों से बंगलादेश से लगातार हो रही मुस्लिम घुसपैठ ने पश्चिम बंगाल का जनसांख्यकीय स्वरूप बदल दिया है। 1947 में यहां मुस्लिम आबादी 17 प्रतिशत थी तो 2011 की जनगणना के अनुसार 27.6 प्रतिशत। अनुमान है कि 2021 यानी वर्तमान में यह 32 प्रतिशत के आसपास होगी। यदि जिलेवार देखें तो कुल 23 जिलों में से 12 जिलों की मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत से अधिक है और निर्णायक है। इसी मुस्लिम मतदाता को पूरी तरह अपने पक्ष में करने के लिए 2019 के चुनाव परिणामों के बाद ममता ने भाजपा को मुस्लिमों का दुश्मन नंबर एक बताना शुरू कर दिया था। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से विधानसभा चुनावों से पूर्व इस थोक वोट बैंक ने गंभीर चुप्पी साध ली। कारण है मुस्लिम मतदाता का इंडियन सेकुलर फ्रंट की ओर गहरा झुकाव। अब ममता को लग रहा है कि जिस प्रकार मुंह पर अंगुली रखकर मुस्लिम मतदाता कांग्रेस, वाममोर्चा और आईएसएफ गठबंधन के साथ-साथ ओवैसी की पार्टी की ओर भी लगाव दिखा रहे हैं, उससे भाजपा को सीधा लाभ मिलना तय है। इसी की बौखलाहट अब ममता के बयानों में भी दिखने लगी है क्योंकि अभी यहां छह चरणों का चुनाव शेष है।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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