आरएसएस, बीजेपी और होसबले - अनंत विश्वेंद्र सिंह

दैनिक "नए समीकरण" में आज प्रकाशित




 

 आरएसएस, बीजेपी और होसबले

अनंत विश्वेंद्र सिंह

संघ के स्वयंसेवकों के बीच दत्ताजी, उपनाम से विख्यात 65 वर्षीय दत्तात्रेय होसबले अगले तीन वर्ष तक सरकार्यवाह यानी आरएसएस के महामंत्री का उत्तरदायित्व सम्हालेंगे। उनका सर्वसम्मत चुनाव आरएसएस की प्रतिनिधि सभा में बेंगलुरु के चेन्नाहल्ली स्थित जनसेवा विद्या केंद्र में आयोजित बैठक में किया गया। हिन्दू संगठन के लिए अमेरिका, रूस, इंग्लेंण्ड, फ्रांस, नेपाल की यात्रायें कर चुके व मात्र भाषा कन्नड के अलावा संस्कृत, हिन्दी, तमिल, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं के मर्मज्ञ दत्ताजी संघ के 16वें सरकार्यवाह हैं। उनका जन्म 1 दिसंबर 1954 को कर्नाटक के शिमोगा जिले के सोराबा में हुआ। अंग्रेजी में एमए दत्ताजी प्रतिष्ठित कन्नड पत्रिका असीमा के संस्थापक संपादक हैं। 

1968 में केवल 13 वर्ष की आयु में दत्तात्रेय होसबले संघ के स्वयंसेवक बने। 1972 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुडे़ और करीब 15 वर्षों तक संगठन महामंत्री रहे। इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल लगाए जाने के विरोध में उभरे जेपी आंदोलन में उन्होंने संक्रीय रहे और लगभग 16 महीने मीसा में जेल में रहे। 1978 में अभाविप के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बने और बाद में उन्होंने इस संगठन का विस्तार न सिर्फ पूर्वोत्तर भारत सहित अंडमान निकोबार द्वीप समूह तक किया बल्कि उत्तर प्रदेश में भी उन्होंने अपने संगठन कौशल का लोहा मनवाया। 2004 में उनकी वापसी संघ में हुई और वे अभिल भारतीय सह-बौद्धिक प्रमुख बनाए गए, 2008 में वे संघ के सह-सरकार्यवाह बने। गत शनिवार को उन्हें सुरेश भैयाजी जोशी के स्थान पर नया सरकार्यवाह चुना गया जो गत 12 वर्षों से सरकार्यवाह थे।

यह समझने की बात है कि दत्तात्रेय होसबले ने लगभग 12 वर्ष तक निवर्तमान सरकार्यवाह भैयाजी जोशी के साथ काम किया है। यही वह दौर है जब संघ ने अपना कलेवर तेजी से बदला। खाकी नेकर के स्थान पर फुल पैंट आई तो ग्राम्य विकास, गोसेवा, पर्यावरण, कुटुम्ब प्रबोधन, सामाजिक समरसता जैसे अनेक आयाम शुरू हुए। राजनीति में, जो संघ अपने स्वयंसेवकों को यह समझाता था कि राजनीति में उतने समय ही रहें जितने समय आप शौचालय में रहते हैं, भैयाजी के नेतृत्व में उसने अपने इस विचार को बदला और बीजेपी को सत्तासीन कराने के लिए केंद्रीय और प्रादेशिक चुनावों में स्वयंसेवकों को पूरी तरह झोंक दिया। यहां तक कि 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए उस चुनाव को राजनीतिक धर्मयुद्ध धोषित किया। कम लोगों को पता है कि श्रीराम जन्मभूमि विवाद के समाधान में भैयाजी जोशी के साथ दत्ताजी कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे। अतः यह कहना उचित ही होगा कि नए सरकार्यवाह दत्ताजी, निश्चित ही भौयाजी जोशी से चार कदम आगे जाएंगे। इसकी बानगी न सिर्फ सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में भी देखने को मिलेगी। उत्तर प्रदेश से दत्ताजी का संबंध बहुत खास रहा है। उल्लेखनीय है बतौर सह-सरकार्यवाह 2016 में ठीम चुनावों से पहले दत्ताजी का केंद्र पटना से हटाकर लखनऊ बनाया गया था। तब उन्होंने उत्तर प्रदेश भाजपा में व्याप्त गुटबाजी को शीथिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अतः यह निश्चित माना जा रहा है कि यूपी में 2022 के आम चुनावों में दत्ताजी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाएगी। 

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)


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