भाईदूज : बहिन-भाई के प्रेम को सुदृढ़ करने वाला त्यौहार।

हिंदूओं के प्रमुख त्योहार में भाईदूज का भी बहुत महत्व है। भाईदूज का पर्व दीपावली से 2 दिन बाद आता है, इस दिन बहन अपने भाई को तिलक कर उसकी लंबी उम्र के लिए हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना भी करती हैं। स्कंदपुराण में लिखा है कि इस दिन यमराज को प्रसन्न करने से पूजन करने वालों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस साल यह पर्व 29 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। इसको मनाए जाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है।

शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य नारायण और उनकी पत्नी छाया के दो संतानें- एक पुत्र यमराज और दूसरी पुत्री यमुना थी। मगर एक समय ऐसा आया जब संज्ञा सूर्य का तेज सहन कर पाने में असमर्थ होने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी। जिसके कारण ताप्ती नदी और शनिदेव का जन्म हुआ। उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद संज्ञा (छाया) का यम व यमुना के साथ व्यवहार में अंतर आ गया। इससे व्यथित होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई। वहीं यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों को दंड देते देख दु:खी होती, इसलिए वह गोलोक में निवास करने लगीं लेकिन यम और यमुना दोनों भाई-बहन में बहुत स्नेह था।
इसी तरह समय व्यतीत होता रहा, फिर अचानक एक दिन यम को अपनी बहन यमुना की याद आई। यमराज अपनी बहन यमुना से बहुत प्रेम करते थे, लेकिन काम की व्यस्तता के चलते अपनी बहन से मिलने नहीं जा पाते थे। फिर कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन यमुना ने भाई यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उन्हें अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। ऐसे में यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
यमुना ने मांगा था वरदान
यमुना ने स्नान के बाद पूजन करके, स्वादिष्ट व्यंजन परोसकर यमराज को भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए इस आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया। फिर यमुना ने कहा कि, ‘हे भ्राता! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो और मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर-सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे।’ यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की ओर प्रस्थान किया। तभी से इस दिन से ये पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसी कारण ऐसी मान्यता है कि भाईदूज के दिन यमराज तथा यमुना का पूजन भी अवश्य करना चाहिए।

भाईदूज का धार्मिक महत्व
धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमुना ने अपने भाई यम को आदर-सत्कार स्वरूप वरदान प्राप्त किया था, जिस वजह से भाईदूज को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल यमराज के वर अनुसार जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करके, यम का पूजन करेगा, मृत्यु के पश्चात उसे यमलोक में नहीं जाना पड़ेगा। वहीं सूर्य की पुत्री यमुना समस्त कष्टों का निवारण करने वाली देवी स्वरूपा मानी गई हैं। इस कारण यम द्वितीया के दिन यमुना नदी में स्नान करने और यमुना व यमराज की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक कर उसकी लंबी उम्र के लिए हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना भी करती हैं। पुराणों के अनुसार, इस दिन की गई पूजा से यमराज प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।

उत्तर प्रदेश में भाई दूज मनाने की परंपरा-
मथुरा और ब्रज क्षेत्र में मान्यता है कि भाई दूज वाले दिन यदि बहन भाई का हाथ पकड़ के यम की बहन यमुना नदी के जल में डुबकी लगाई तो भाई यम पास के प्रकोप से बचता है और यमराज की कृपा पाता है





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