Posts

Showing posts from August, 2017

शिक्षक के लिए आवश्यक ”नैतिकता”

Image
भारत के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक प्रवाह में गुरु को विशेष स्थान और महत्व प्रदान किया गया है। भारत में गुरु वह है जो अपने शिष्य के जीवन पथ को ज्ञान और विवेक से प्रकाशित करते हुए उसके व्यक्तित्व को इस प्रकार गढ़े कि शिष्य पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों का सफलता पूर्णक निर्वहन कर सके। शिक्षक के उत्तरदायित्व समय सीमा या स्थान से बंधे नहीं हैं। शिष्य के कल्याण के लिए वह अपने हितों का कहीं भी और कभी भी निस्वार्थ भाव से बलिदान करने को तत्पर रहता है। आज के भौतिकतावादी युग में किसी का वास्तविक अर्थों मंे गुरु होना सरल नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं। अतः आशा करनी चाहिए कि हम गुरु बनने का प्रयास करते हुए कम से कम एक अनुकरणीय शिक्षक बन सकें। इसके लिए शिक्षक के जीवन में वैचारिक और व्यवहारिक दोनों स्तरों पर नैतिकता का विशेष महत्व है। यह नैतिक मूल्यों की दर्दनाक नीलामी का दौर है। संयम, शांति, सद्भावना, सहचर्य, सहयोग, सहिष्णुता, त्याग, तपस्या और बलिदान जैसे शब्द अपने अर्थ खो रहे हैं। पाश्चात्य विद्वान मैक्स मूलर कहता है कि भारत के क्या कहने, वहां की तो पनिहारिन भी संसार की न...