श्रेष्ठतम प्रबंधक हैं हनुमान
हिन्दू मतावलंबियों में श्रीराम भक्त हनुमान जी की आराधना को विशेष फलदायी माना जाता है। धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी उनको अत्यंत उच्च स्थान प्राप्त है। अतुलित बलधारी होने के बावजूद भी सीया-राम के प्रति उनकी भक्ति, समर्पण और सेवाभाव की प्रबलता के कारण वे इन तत्वों के माध्यम से मनवांक्षित फल प्राप्त करने का प्रतीक माने जाते रहे हैं। लेकिन आधुनिक काल में जब नए सिरे से वीर और बुद्धिमान हनुमान के कार्यों की समीक्षा की जा रही है तब हमें पता चल रहा है कि हनुमान जीवन के प्रबंधन की कला के श्रेष्ठतम शिक्षक हैं। भक्ति के साथ-साथ यदि हम उनके प्रबंधन कौशल का भी अनुसरण करें तो जीवन के लक्ष्यों तक पहुंचना काफी आसान हो जाएगा। वे बुद्धिमान हैं अर्थात कठिन से कठिन कार्यों को सही योजना बनाकर करते हैं और सदैव सफल होते हैं, असफलता उनके आसपास तक कभी नहीं फटकती। वे दूरदर्शी हैं, इसी कारण भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर श्रीराम और सुग्रीव की मैत्री कराते हैं। वे नीतिकुशल हैं, सुग्रीव को मैत्रीधर्म याद दिलाने की बात हो या रावण को स्त्री के सम्मान की शिक्षा देने की बात, वे नीति के अनुसार ही आचरण करते हैं। वे सभी कार्यों में निपुण हैं अर्थात जो भी काम उन्हें सौंपे गए, उन्होंने सभी को कुशलता और समर्पण के साथ संपन्न किया। जामवंत और उनकी वार्ता का प्रसंग बताता है कि उनमें सभी वरिष्ठ जनों की सलाह मानने का सदगुण है। अनेक स्थानों पर वे श्रेष्ठ मार्गदर्शक के रूप में भी नजर आते हैं। वे श्रेष्ठतम चरित्र और उच्चतम नैतिक साहस के स्वामी हैं। माता सीता की खोज में लंका पहुंचकर उनके और रावण के बीच जो संवाद होता है उसमें उनकी निर्भीकता, स्पष्टता, निश्चिंतता और दृढ़ता अभूतपूर्व रूप से प्रकट होती है। उनकी स्मरण शक्ति, लक्ष्य की स्पष्टता, दुश्मन और कठिनाइयों से सजगता के साथ ही उनका धैर्य, जोश, लगन, संकल्प, सत्यनिष्ठा तो प्रभावित करते ही हैं, साथ ही सभी परिस्थितियों में उनका विनोदी स्वभाव सांसरिकता में निरपेक्षता का पाठ पढ़ाता है। आज के झंझावाती दौर में पवन पुत्र वीर हनुमान के कृतित्व हमारे जीवन के प्रबंधन में श्रेष्ठ मार्गदर्शक हो सकते हैं।
आज उनकी जयंती पर हार्दिक बधाई।
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